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अनेकान्त 59/1-2
हैं, अतः दूध, दही भी गुड़ आदि के समान सेवन करने योग्य रस है। दूध अमृत है ऐसा एक कथानक महाभारत में इस प्रकार मिलता है कि यक्ष ने युधिष्ठित से प्रश्न पूछा कि अमृत क्या है? युधिष्ठिर ने उत्तर दिया गोरस (घी, दूध, दही)।
दिगम्बर जैनाचार्यों ने धवला आदि कई ग्रंथों में स्पष्ट उल्लेख किया है कि साग, अनाज, दूध आदि सचित्त पदार्थों को उबालकर जीवाणुरहित (अचित) प्रासुक किया जा सकता है, अतः दूध फलादि भक्ष्य है। मांस को अग्नि में भी रख देने पर भी जीवाणु रहित (प्रासुक) नहीं कर सकते, अतः मांसाहार अभक्ष्य है।
अहिंसक व्यवसाय है पशु पालन :
गाय, भेस आदि पशुओं को पालना उनका दूध दुहकर उपयोग में लाना और बैल आदि को खेती के काम में लाना जैन धर्म सम्मत है। दिगम्बर जैनाचार्य जिनसेन स्वामी ने आदि पुराण के 16 वें पर्व के 184 वे श्लोक में लिखा है कि प्रथम तीर्थकर आदिनाथ स्वामी के समय जब भोग भूमि के बाद कर्मभूमि प्रारंभ हुई तब आदिनाथ स्वामी ने वर्ण व्यवस्था करके प्रजा को अपनी आजीविका चलाने असि, मसि, कषि आदि षट्कर्म करने का उपदेश दिया। जो खेती, व्यापार और पशुपालन आदि करके आजीविका चलाते थे वे वैश्य कहलाये। अतः कृषि एवं पशुपालन करना एक अहिंसक और जैनागम सम्मत कार्य है।
दूध दुहाना आवश्यक क्यों :
दुग्ध ग्रंथि में संग्रहीत होने वाला अमृत तुल्य दूध दुहना अनिवार्य है। लेकिन दूध दुहने वाला यह ध्यान रखे कि पहले लगभग 1 माह तक बछड़े को पेट भरने तक दूध पिलाये और शेष दूध दुहले, उसके बाद जब बछड़ा बड़ा हो जाये और घास, रोटी आदि खाने लगे तब आधा या एक चौथई दूध पिलाये, शेष दुहले, परंतु इंजेक्शन लगाकर न दुहे।