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________________ अनेकान्त 59/1-2 पीने के बाद दिखते हैं। दूध नहीं पचा सकने वाला व्यक्ति यदि (चावल रोटी अदि के साथ) थोड़ा-थोड़ा बढ़ाते हुये क्रम से दूध का सेवन करता है, तो लेक्टेस एंजाइम की पर्याप्त मात्रा हो जाती है और परिणाम स्वरूप दूध पचने लगता है। जैनाचार्यों की दृष्टि में दूध : दिगम्बर जैनाचार्य सोमदेव सूरि महाराज ने यशस्तिलक चम्पू महाकाव्य के 7 वें अध्याय में लिखा है कि शुद्धं दुग्धं न गो मांसं वस्तु वैचित्र्यमीदृशम्। विवध्वं रत्न माहेयं विषं च विपदे मतः।। 354 ।। अर्थात्-दूध शुद्ध है मांस अशुद्ध है यही तो वस्तु स्वरूप की विचित्रता है। जैस साँप के फण में नागमणि होती है और विष भी होता है। विष तो प्राणी को मार देता है, जबकि नागमणि विष के जहर को मार देती है और प्राणी को बचा लेती है। इस प्रकार वस्तु स्वरूप के अनुसार जैसे साँप की मणि ग्राह्य है और विष त्याज्य है, वैसे ही प्राणी का दूध तो ग्राह्य है और मांस त्याज्य है। इसी बात को और स्पष्ट करने के लिए आचार्य महाराज दूसरा उदाहरण देते हुये कहते हैं कि हेयः पलं पयः पेयं सत्यपि कारणे। ____ विष दोरायुषे पत्रं, मूलं तु मृतये मतम् ।। अर्थात-जैसे विष वृक्ष का पत्ता और उसकी जड़ इन दोनों के उत्पादक कारण एक ही वृक्ष है फिर भी विष वृक्ष का पत्ता अमृत तुल्य और आयु रक्षक है और जड़ जीवन नाशक होने से अभक्ष्य और त्याज्य है। इसी प्रकार दूध अमृत तुल्य होने से भक्ष्य है और रक्त, मांस विष तुल्य होने से अभक्ष्य है, जैनाचार्यों ने गुड़, तैल नमक इन तीन रसों की श्रेणी में दूध, दही और घी इन तीन रसों को रखकर कुल 6 रस कहे
SR No.538059
Book TitleAnekant 2006 Book 59 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2006
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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