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________________ अनेकान्त 59/3-4 17 पर ली। दुकानकार ने उसमें रात भर जलती रहेगी इतना पर्याप्त तेल भर दिया और ग्राहक को कह दिया की यह लालटेन रात्रि भर जलेगी किन्तु ग्राहक के घर रात्रि 12 बजे बुझ गई, उसका मेंटल नहीं टूटा और नहीं व भभकी किन्तु समय से पूर्व बुझ गई। दुकानदार से ग्राहक शिकायत करता है। दुकानदार परेशान होता है उसे असमय में बुझने का कारण नहीं पता चलता। जब वह सावधानी से देखता तो लालटेन के नीचे छोटा बारीक सुराक पाता है और वह असयम में बझने के कारण को जान जाता है ऐसा ही आयुकर्म के सम्बन्ध में हैं और कर्मभूमिया मनुष्य तिर्यञ्च अपमृत्यु को प्राप्त हो जाता है। सभी प्रमाणों से यह स्पष्ट हो जाता है कि बध्यमान आय की स्थिति और अनुभाग में जिस प्रकार अपवर्तन होता है। उसी प्रकार भुज्यमान आयु की स्थिति और अनुभाग में भी अपवर्तन होता है। किन्तु बध्यमान आयु की उदीरणा नहीं होती और भुज्यमान आयु की उदीरणा होती है, जिससे अकालमरण (अपवर्तन) भी होता है। इसमें कोई संशय/सन्देह को अवकाश नहीं है। वर्तमान में चिन्तनीय है कि शास्त्रों में स्वकालमरण और अकालमरण दोनों व्याख्यान पढने के बाद भी कुछ लोग अकालमरण का निषेध क्यों करते हैं। उनका इसमें क्या उद्देश्य है। मुझे तो सर्वमान्य शास्त्रीय विषय के निषेध में कोई विशेष प्रयोजन प्रतीत होता है। वह यह है कि लोग संसार शरीर भोगों से भयभीत न हों, और संयम व्रत चरित्र से दूर रहें। उन जैसे भोग विलासिता में लिप्त रहते हुए, अपने को धर्मात्मा कहला सकें या मानते रहें। पुरुषार्थ हीन रहते हुए स्वयं भोगी रहें और दूसरों को भी अपने जैसा बनाये रखें जिससे स्वार्थ सिद्धि में बाधा न रहे। सन्दर्भः 1. बाह्य प्रत्ययवशादायुषो हासोऽपर्वतः। बाह्यस्योपघातनिमित्तस्यविषशस्त्रादेः सति सन्निधाने ह्रसोऽपवर्त इत्युच्यते एते औपपादिकादय उक्ता अनपवायुषाः न हि
SR No.538059
Book TitleAnekant 2006 Book 59 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2006
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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