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________________ 128 अनेकान्त 59/3-4 तेषामायुषो बाह्यनिमित्तवशादपवर्तो ऽस्ति। तत्त्वार्थवार्तिक, भाग-1, पृ. 426 2. अकाल मृत्यु के अभाव में चिकित्सा आदि का प्रयोग किस प्रकार किया जायेगा क्योंकि दुःख के प्रतिकार के समान ही अकाल मृत्यु के प्रतिकार के लिए चिकित्सा आदि का प्रयोग किया जाता है। श्लोकवार्तिक पृ. 343 3. णिरुवक्कमाउआ पुण छम्मासावसेसे आउअबंध पाओग्गा होती। धवल पु.10 पृ. 234 जो निरुपक्रमायुष्क जीव हैं वे अपनी भुज्यमान आयुछह मास शेष रहने पर आयुबन्ध के योग्य होते हैं। 4. दत्वैव फलं निवत्तेः नाकृतस्य कर्मणः फलमुपभुज्यते, न च कृतकर्मफलविनाशः अनिर्मोक्षप्रसंगात् दानादिक्रियारम्भाभावप्रसंगाच्च किन्तु कृतंकर्म कर्ते फलं दत्त्वैव निवर्तते विततार्द्रपटशोषवत् अयथाकाल निर्वृतः पाक इत्ययं विशेषः ॥ तत्वार्थ वार्तिक 2/53 संस्कृत टीका 5. इतरेषामनियमः । सर्वार्थसिद्धि 2/53 की टीका 6. तेभ्योऽन्ये तु संसारिणः सामर्थ्यादपवायुषोऽपि भवन्तिति गम्यते। 7. कालनयेन निदादिवासनुसारि पच्यमान सहकारफलवत्समया यत्र सिद्धिः अकालनयेन कृत्रिभोष्मपच्यमानसहकारफलवत्समयानायत्र सिद्धि॥ प्र. सार रीडर-संस्कृत विभाग दिगम्बर जैन कालेज बड़ौत (उ.प्र.)
SR No.538059
Book TitleAnekant 2006 Book 59 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2006
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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