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________________ अनेकान्त 59 / 3-4 भविष्य के भाग्य - ज्ञाता द्वारा किसी ( कर्मभूमिज) की आयु का हितान्त अर्थात् - अमुक समय पर मरण होगा, ऐसा जान भी लिया जावे तो भी विपरीत निमित्तों के मिलने पर उसकी आयु का शीघ्र क्षय हो जाता है। 126 जैनाचार्यो ने सोपक्रमायुष्क (अपमृत्यु) जीवों का विस्तृत विचार आचार्य श्री उमास्वामी द्वारा लिखित "औपपादिकचरमोत्तम देहाऽसंख्येयवर्ष्यायुषोऽनपवर्त्यायुषः " सूत्र के आधार पर किया है क्योंकि इस सूत्र में अपवर्त्य (निरुपक्रमायुष्क) जीवों का कथन होने से उनसे प्रतिपक्षीय जीवों का प्रतिपादन क्रम प्राप्त है । आचार्य पूज्यपाद ने उक्त सूत्र की व्याख्या में लिखा है की औपपदिक आदि जीवों की आयु बाह्य निमित्त से नहीं घटती यह नियम है तथा इनके अतिरिक्त शेष जीवों का ऐसा कोई नियम नहीं है । यदि कारण मिलेंगे तो आयु घटेगी और कारण न मिलेगे तो आयु नहीं घटेगी। भास्करनन्दि भी इसी बात की पुष्टि करते हैं कि औपपदिक से जो अन्य संसारी जीव है, उनकी अकालमृत्यु भी होती है" इसी क्रम भट्टाकलंकदेव, आचार्य विद्यानन्दि, कलिकाल सर्वज्ञ वीरसेन आदि सभी आचार्यो ने उमास्वामी द्वारा प्रति पादित सिद्धान्त का समर्थन किया है । आचार्य उमास्वामी के परवर्ती आचार्यों को अकालमरण के सन्दर्भ में विशेष दृष्टि मिली। उनसे प्राप्त तद्विषय सम्बन्धी बीज को पाकर विस्तार के साथ स्पष्ट किया । इस विषय में आचार्य उमास्वामी के अवदान को निश्चित रूप से सराहा गया है। तभी तो परवर्ती आचार्यो ने इस विषय को विशेष रूप से प्रतिपादित किया है। जैनागम की स्वतन्त्र देन नय पद्धति के आश्रय से भी उक्त विषय की सिद्धि की गई है । अनेक पौराणिक कथनों पर भी भुज्यमान के अपकर्षण करण का स्पष्टीकरण हो जाता है । लौकिक उदाहरणों से भी इसे समझा जा सकता है। जैसे किसी व्यक्ति ने एक लालटेन किसी दुकानदार से रातभर जलाने हेतु किराये
SR No.538059
Book TitleAnekant 2006 Book 59 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2006
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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