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अनेकान्त 59/3-4
सन्दर्भ 1 सल्लहणा य दुविहा अब्भतरिया य बाहिरा चेव।
अब्धेतरा कसायेसु बाहिरा होदि दु सरीरे ॥ भ.आ. गाथा न. 208 ।। 2 सव्वे रसे पणीद णिज्जूहित्ता दु पत्तलुक्खेण।
अण्णदरेणुवधाणेण सल्लिहइ य अप्पयं कमसो॥ भ.आ 209 ॥ अणसण अवमोयरियं चाओ य रसाण वृत्तिपरिसरवा। कायकिलेखसेज्जा य विवित्त वाहिर तवो सो ॥ भ.आ. 210॥ बाहिरवेण होदि हु सव्वा सुह सीलदा परिच्चत्ता।
सल्लिहिंद च सरीर ठविदों अप्पा य संवेगे। भ.आ. 239 || 4. दुक्खं च भाविदं होदि अप्पडिबद्धो य देह रस सुक्खे।
मुसमूरिया कषाया विसएसु अणायरो होदि ॥ अभा. 241 ॥ 5 अणु पुयेणाहारं सवट्टतो य सल्लिहइ देहं।
दिवसुग्गहिएण तवेण चावि सल्लेहणं कुणइ।। विविहाहिं एसणाहि य अवग्गहेहिं विविहेहि उग्गेहि।
संजममविरहितो जहाबल सल्लिहइ देहं ॥ अ.भा. 250 ॥ 6. गाथा न. 256 भ. आराधना विजयोदयाटीका शिवार्य, 7. गाथा न. 265, 8.
गाथा न. 166, 9. पिच्छी कमडलु कृति- आचार्य विद्यानन्द प्रकाशक राजस्थान जैन
सभा जयपुर पेज 185 से साभार। 10. न मे मृत्यु. कुतो भीतिर्न मे व्याधिः कुतो व्यथा ।
नाहं बालो न वृद्धोऽहं न युवैतानि पुद्गले। वही - पेज 185॥ 11. जी विय मरणे लाहालाहे संजोग विप्पजोगे य।
बंधुरि सुह दुक्खादो समदा समायियं णाम॥ वही - पेज1851 12. आगमादि दुःख सन्तप्तः प्रक्षिप्तो देह पंजरे। नात्मा विमुच्यतेऽन्येन मृत्युभूमिपतिं बिना॥ श्लोक- 5 समाधि सप्तदशी
शासकीय उच्चतर माध्यमिक शाला
क्र. 3 के सामने,
बीना (म.प्र.)