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अनेकान्त 59/3-4
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स्थापत्य के महान प्रश्रयदाता राणा कुंभा का योगदान रहा है। यह मंदिर 3716 वर्ग-मीटर क्षेत्र में फैला है। इसमें उन्नतीस बड़े कक्ष तथा 420 स्तंभ हैं। इससे स्पष्ट है कि इस मंदिर की योजना निस्संदेह ही महत्वाकांक्षी रही है। मंदिर की विन्यास-रूपरेखा जटिल है। ढलान पर स्थित होने के कारण मंदिर के जगती या अधिष्ठान-भाग को इसके पश्चिम दिशा में यथेष्ट ऊँचा बनाया गया है। केन्द्रवर्ती भाग में वर्गाकार गर्भगृह स्थित है। प्रत्येक द्वार रंग-मण्डप में खुलता है। और इस रंग-मण्डप का द्वार एक दोतल्ले प्रवेश-कक्ष में खुलता है। इस मण्डप के बाद एक कक्ष आता है, जो आकर्षक है। यह कक्ष भी दोतल्ला है, इस भाग में सीढ़ियाँ हैं, इसलिए इसे बलन या नाली-मण्डप कहा जाता है। लगभग 62 मीटर तथा 60 मीटर लबे-चौडे क्षेत्रफल के आयताकार दालान, जिसमें चारों ओर प्रक्षिप्त वाह्य भाग की मुख्य संरचनाएँ सम्मिलित नहीं हैं। इस सीमा भित्ति के भीतर की सतह पर 86 देवकुलिकाओं की एक लम्बी पंक्ति है। मंदिर के शीर्ष पर पॉच शिखर हैं, जिनमें से सबसे बड़ा और प्रमुख शिखर गर्भगृह को मण्डित किये हुए है। शेष चार शिखर चारों कानों पर पर स्थित देवालयों को मण्डित किये हुए हैं। इस आयताकार मण्डप में किसी भी प्रवेश-मंडप से प्रवेश किया जा सकता है, जो दो तल वाले हैं। इन प्रवेश-मण्डपो मे सबसे बड़ा पश्चिम की ओर है, जिसे निस्संदेह मुख्य प्रवेश-मण्डप माना जा सकता है। गर्भगृह की आंतरिक संरचना स्वस्तिकाकार कक्ष के रूप में है। इस मंदिर की विशेषता उसकी ऊँचाईयाँ विशद विन्यास-रूपरेखा और उसपर सुदक्षतापूर्ण ही नहीं वरन् उसकी विविधता तथा उसके विभिन्न भागों की बहुलता है। मंदिर की सुन्दरता के लिए फर्ग्युसन द्वारा सही ही कहा गया है। "इसके अनेकानेक मंदिर और इन भागों के सामान्यतः लघु आकार यद्यपि इस मंदिर के एक स्थापत्यीय वैभवपूर्ण संरचना होने के दावे में बाधक हैं परन्तु इन भागों की विविधता प्रत्येक स्तंभ पर किया गया एक दूसरे से सर्वथा भिन्न सूक्ष्मांकन का सौन्दर्य, उसकी व्यवस्था-क्रम उसकी मोहकता, सपाट दतों पर विभिन्न ऊँचाईयों के गुंबदों का सुरुचिपूर्ण समायोजन तथा प्रकाश के लिए बनायी गयी संरचनाओं की विधि- ये समस्त विशेषताएँ मिलकर