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________________ अनेकान्त 59/3-4 में इस प्रकार का दृश्य बना है- एक तरफ एक पुरुष घोड़े पर बैठा है, एक छत्रधर उस पर छत्र रख रहा है। इस दृश्य के दूसरी तरफ वही मनुष्य हाथ जोड़ कर खड़ा है। इन पर छत्र रखकर एक छत्रधर खड़ा है। पास में स्त्री तथा पुत्र खड़े हैं। नीचे संवत् रहित लेख खुदा है, जिसमें बारहवीं शताब्दी के सुप्रसिद्ध राज्यमान्य श्रावक श्रीपाल कवि के भाई शोभित का वर्णन है। देलवाड़ा के प्रसिद्ध जैन मंदिरों में विमल वसहि के बाद बनने वाला लूण वसहि मंदिर महामात्यवस्तुपाल-तेजपाल द्वारा बनवाया गया। विमल वसहि मंदिर के पास ही उसी के समान उत्तम कारीगरी-नक्काशी वाले संगमरमर का मूल गंभारा, गूढ़ मण्डप, नव चौकियाँ, रंग मण्डप, बलानक खत्तक, जगति की देहरियों तथा हस्तिशाला से अत्यन्त सुशोभित हैं। इस मंदिर के गूढ मण्डप के मुख्य द्वार के बाहर नव चौकियों में दरवाजे के दोनों तरफ अलंकृत नक्काशी वाले दो आले हैं। इस मंदिर का अलंकरण विमल-वसहि के समान है। विमल-वसहि और लूण-वसहि मंदिरों की दीवारें, द्वार, स्तंभ, मंडप, तोरण और छत के गुम्बज में न केवल फूल, झाड़, बेल, बूटे, हड़ियाँ और झूमर आदि विभिन्न प्रकार की विचित्र वस्तुओं की खुदाई ही की है; अपितु हाथी, घोड़े, ऊँट, व्याघ्र, सिंह, मत्स्य, पक्षी, मनुष्य और देव-देवियों की नाना प्रकार की मूर्तियों के साथ ही साथ मनुष्य जीवन के जुड़े अनेक प्रसंग- जैसे राज दरबार, सवारी, वरघोड़ा बारात, विवाह प्रसंग में चौरी आदि नाटक, संगीत, रणसंग्राम, पशु चराना, समुद्र यात्रा पशुपालों का गृह- जीवन, साधु और अनेक श्रावकों की अनेक प्रसंगों की धार्मिक क्रियाएँ, व तीर्थकरादि महापुरुषों के जीवन के अनेक प्रसंगों की भी बड़ी सुन्दर मनोहर खुदाई की है। मंदिर की देहरी न.9 के दूसरे गुम्बज में द्वारिका नगरी और समवसरण का दृश्य है, उसके मध्य में तीन गढ़ वाला समवसरण है। जिसके मध्य में जिन मूर्ति युक्त देहरी है। समवसरण की एक तरफ एक पंक्ति में साध शुओं की बारह बड़ी और दो छोटी मूर्तियाँ हैं। दूसरी तरफ एक पंक्ति में श्रावकों और दूसरी पंक्ति में श्राविकायें हाथ जोड़ कर बैठी हैं। गुम्बज के
SR No.538059
Book TitleAnekant 2006 Book 59 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2006
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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