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अनेकान्त 59/3-4
एक कोने की चौकड़ी में समुद्रको दिखाया है। उस समुद्र में से खाड़ी निकाली गई है, जिनमें जलचर जीव क्रीड़ा कर रहें हैं। खाड़ी में जहाज भी है। समुद के किनारे के आसपास जंगल का दृश्य है। जंगल के एक प्रदेश में एक मन्दिर व भगवान की प्रतिमा युक्त एक देहरी है। गुम्बज के दूसरे कोने में गिरिनार पर्वतस्थ मंदिरों का दृश्य है, शिखर युक्त चार मंदिर हैं। मंदिर के बाहर भगवान की कायोत्सर्ग ध्यान की खड़ी मूर्ति है। मंदिर छोटी-छोटी देहरियों तथा वृक्षों से घिरे हुए हैं। मंदिरों के पास के बीच की पंक्ति में पूजा की सामग्री-कलश, फूल-माला, धूपदान और चामरादि हाथ में लेकर श्रावक लोग मंदिरों की ओर जाते हैं। उनके आगे छः साधु भी हैं। जिनके हाथ में ओघा व मुँहपत्ति के अतिरिक्त एक के हाथ में तरपणी ओर एक के हाथ में दंड है। अन्य सब पंक्तियों में हाथी, घोड़े, पालकी, नाटक, वजिंत्र, पैदल सेना तथा मनुष्यादि हैं। वे सब मंदिर की अथवा समवसरण की तरफ जिन दर्शनार्थ जा रहे हों ।12 'कुमार' मासिक के संपादक ने इन मंदिरों की संदरता को इन शब्दों में व्यक्त किया "विमलशाह का देलवाड़े में बनवाया हआ महान देवालय समस्त भारतवर्ष में शिल्पकला का अपूर्व अनुपम नमूना है। देलवाड़े के मंदिर केवल जैन मंदिर ही नहीं हैं, वे गुजरात के अतुलनीय गौरव की प्रतिमा
है।"
जैन मंदिरों में कुछ उल्लेखनीय जैन मंदिर जैसलमेर के दुर्ग में भी पाये गए हैं। जिनमें पार्श्वनाथ, आदिनाथ शांतिनाथ, संभवनाथ और महावीर
आदि के हैं। इन मंदिरों के विषय में ढ़ाकी का मत उल्लेखनीय है कि 'रेगिस्तानी निर्जन क्षेत्र में लगभग एक शताब्दी तक इन मंदिरों का निर्माण मानो एक वंश परंपरानुगत क्रम में हुआ है- जैसे पिता के उपरांत पुत्र जन्म लेता है। इनकी विकास परम्परा निर्विघ्न रूप में स्थिर गति से बढ़ती रही है जिसे देखकर इसकी प्रगति अथवा अन्यथा स्थिति का अनुमान लगाया जा सकता है।"14
इन मंदिरों में सबसे प्राचीन मंदिर पार्श्वनाथ 15वीं शताब्दी की कलात्मकता का उत्कृष्ट तोरण, अलंकृत मुख-चतुष्की, रंग-मण्डप,