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________________ अनेकान्त 59/3-4 प्रदान करके भारी मनभेद और भयावह स्थिति उत्पन्न होने की चिन्ता व्यक्त की है। थोड़ा विराम लेते हुए लाला जी बोले - आप क्या कहते हैं इस विषय पर? ___ मैंनें गहरी श्वास ली और कहा- लाला जी! लगता है कि हमारा समाज आज जिस दौर से गुजर रहा है वह सुखद भविष्य की संसूचना तो नहीं दे रहा। कारण कई हैं उनमें से सबसे खतरनाक है पंथ व्यामोह। कहने को तो हम 21वीं सदी में जी रहे हैं। लेकिन हमारी मानसिकता 12 व 13वीं सदी की है। दुर्योधन की मनोवृत्ति और हठवादिता, अहंमन्यता हमारे दिलो-दिमाग पर इस कदर हावी है कि हम सूर्य के प्रकाश में भी सत्य को देखने-परखने की शाक्ति खो चुके हैं। दम्भ तो वीतरागता का है। यथार्थ में सब अपने स्वार्थ की रोटी सेंकनें की जुगत में ही लगे हैं। जहाँ तक कुण्डलपुर के बाबा के नव मंदिर का प्रश्न है वह सर्वथा उचित है। पहले भी साहू परिवार ने उस मंदिर का जीर्णोद्धार कराया था। अब यदि जीर्णोद्धार सम्भव नहीं था और आचार्य श्री की प्रेरणा से वहाँ की कमेटी ने नए मंदिर का निर्णय लिया तो कौन सी ऐसी गाज समाज पर गिर पड़ी कि लोगों ने पुरातत्व विभाग और न्यायलय के दरवाजे खटखटाये। संस्कृति संरक्षण में दतचित्त महानुभावों ने सम्भवतः यह विचार करने का कष्ट नहीं उठाया कि स्वयं की जांघ का फोड़ा ठीक कराने के लिए डिंडोरा न पीट कर चुप-चाप उसका आपरेशन करके स्वस्थ होने का उपक्रम किया जाता है। पुरातत्व विभाग ने कुण्डलपुर क्या, कहीं भी जैन मंदिर के जीर्णोद्धार करने में पहल की हो मुझे ज्ञात नहीं। हाँ, सामाजिक वैयवितक एवं संकीर्ण सोच के चलते अवश्य पुरातत्व विभाग ने रोड़ा अटकाये हैं। वैसे उस विभाग को कुछ लेना देना नहीं। ___ जीर्णोद्धार अथवा विकास के नाम पर भगवान महावीर की जन्मस्थली वैशाली कुण्डग्राम (कुण्डलपुर) को बदलकर नालन्दा जिला स्थित कुण्डलपुर को भगवान महावीर की जन्मस्थली के रूप में स्थापित प्रतिष्ठापित करने में जैसा प्रायोजन किया गया। उस समय न तो टोंग्या जी सामने आए और न ही संस्कृति रक्षा मंच वाले। क्योंकि उस प्रोजेक्ट
SR No.538059
Book TitleAnekant 2006 Book 59 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2006
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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