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कोहराम किसका?
- डॉ. सुरेशचंद जैन एक लम्बे अर्से के बाद लाला मुसद्दी लाल जी मेरे पास आए। प्रारंभिक शिष्टाचार के बाद आदतन उन्होंने कहा- डॉ.सा.! आप अजित टोंग्या जी को जानते है? मैंने कहा - नहीं, परिचय तो नहीं हुआ कभी कहीं मुलाकात हुई हो तो कह नहीं सकता, नाम जरूर सुना है। कहिए क्या बात है? आश्चर्य से वे मुझे देखते हए बोले- आश्चर्य है आप उन्हें नहीं जानते आजकल उन्होंने कोहराम मचाया हुआ है। चौंकने की बारी मेरी थी 'कोहराम' कैसा कोहराम? बातचीत का सूत्र लेते हुए वे बोले - अभी यात्रा करते हुए कुण्डलपुर गया था। मैने पूछा- नालन्दा वाला या बड़े बाबा वाला। बोले- बड़े बाबा वाला कुण्डलपुर। मैंने कहा वहाँ तो अब सब कुछ ठीक चल रहा है। 3 - 4 माह पहिले मैं होकर आया हूँ। वे बोले- वहाँ तो सब ठीक है, बड़े बाबा का अतिशय है, अनेक बाधाओं के बाद भी कार्य निर्बाध रूप से चल रहा है, परन्तु उज्जैन के महानुभाव अजित टोंग्या जी ने कुण्डलपुर कोहराम नामक एक पुस्तिका प्रकाशित की है और अनका दावा है कि कुण्डलपुर में जो भी हुआ वह मूल परम्परा का घात किया गया है और प.पू.आ. विद्यासागर जी की प्रेरणा और आशीर्वाद से हुआ है। मैं उन्हें टकटकी लगाकर देख रहा था और वे बोले जा रहे थे। टोंग्या जी का कहना है कि कुण्डलपुर बीसपंथी आम्नाय का मंदिर है यह बात उन्होंने श्रीकान्त चंवरे उल्हासनगर वालों के एक लेख के माध्यम से उजागर की है। श्री चंवरे जी ने कहा है कि कुछ समय पहले वहाँ की पूजा-पद्धति बदली गई है। प्रश्न भी उछाला है कि तेरह पंथ के साधु या कमेटी को यह अधिकार किसने दिया कि वहाँ की पूजन-पद्धति को बदल दिया जाय। नवीन मंदिर निर्माण को भी प्रश्नांकित करते हुए बीस पंथ वालों की चिन्ता उजागर की है कि उनके मन में विद्रोह की ज्वाला धधक रही है उनका दिल दुःख रहा है। रेवासा, सांगानेर, बिजौलिया एवं चांदखेड़ी के विकास को भी आम्नाय के प्रश्नों से देखते हुए उसे परिवर्तन की संज्ञा