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________________ अनेकान्त 59/3-4 पूर्ण उद्देश्यों के प्रति समर्पित यह पत्रिका अपने अवदानों के लिए जैन इतिहास, सिद्धांत, साहित्य, समीक्षा, सामयिक कविता एवं मूलभाषा सम्बन्ध आलेखों का एक सशक्त जीवन्त दस्तावेज है, जिसे आ० जुगलकिशोर मुख्तार, पं० परमानन्द शास्त्री, श्री भगवत स्वरूप भगवत् श्री अगरचन्द्र नाहटा, डॉ० दरबारी लाल कोठिया, श्री अयोध्या प्रसाद गोयलीय, डॉ० ज्योतिप्रसाद जैन, पं० हीरालाल सिद्धांत शास्त्री, पं० नाथूराम प्रेमी, पं० आदि मनीषी विद्वानों ने पल्लवित और पुष्पित किया ही है। श्री पद्मचन्द्र शास्त्री ने तो विगत 30 वर्षों में अनेकान्त में प्राकृत विषयक जो सामग्री प्रस्तुत की है वह जैन साहित्येतिहास के लिए भविष्य में मार्गदर्शक सिद्ध होगी।" तात्पर्य यह है कि अनेकान्त में इतिहास-पुरातत्त्व के आलेखों के साथ ही मूल आगम ग्रन्थ सम्पादन तथा आगम भाषा विषयक सामग्री का भी प्रचुरमात्रा में प्रकाशन हुआ है। वह भी इतिहास की सामग्री से भिन्न नहीं है। 2500वें निर्वाण महोत्सव के प्रसंग में 'अनुत्तर योगी महावीर' कृति की समीक्षा करते हुए 'विष मिश्रित लड्डू' शीर्षक से परम्परागत मूल्यों की रक्षा का ऐतिहासिक दस्तावेज प्रस्तुत किया है। इसी प्रकार मूल आगम एवं भाषा विषयक पं० पदमचन्द्र शास्त्री द्वारा प्रस्तुत आलेख दिगम्बर आगमों के सुस्पष्ट निर्धारण के उन आयामों और मानदण्डों को स्थापित करते हुए मार्गदर्शन करते हैं, जिन पर समस्त दिगम्बर परम्परा और इतिहास की भावी भित्ति खड़ी होगी तथा अध्येता अनुसन्धित्सओं को एक सुनिश्चित मार्ग निर्धारण करने को मार्ग प्रशस्त करेगा। विडम्बना यह है कि आज कतिपय विद्वत् वर्ग सत्यान्वेषी न होकर अर्थान्वेषी है और अर्थ की लोलुपता सत्य को खोजने में सबसे बड़ी बाधा है यदि ऐसा न होता तो वर्तमान के सभी मनीषी विद्वान् प्राकृत विषयक अवधारणा और मूलआगम संपादन-संशोधन विषयक पं० पद्मचन्द्र शास्त्री की धारणा से सहमत होते हुए भी उदासीन भाव से असहमत न होते। विद्वत्-समुदाय ने अनेकान्त के परम्परा पोषित सन्दर्भो में भी न्याय का आश्रय नहीं लिया यह भी विडम्बना और आश्चर्य का विषय है। परन्तु पण्डित पदमचन्द्र शास्त्री ने अदम्य साहस के साथ एकला चलो रे की राह नहीं छोड़ी और समाज को ज रा सोचिए तथा परम्परित मूल्यों के प्रति अपने आलेखों के माध्यम से सचेत करते रहे।" - प्रेमचन्द्र जैन
SR No.538059
Book TitleAnekant 2006 Book 59 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2006
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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