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________________ अनेकान्त 59/1-2 113 रचित 'सारसंग्रह' (अपर नाम-अकलंक संहिता) में पृष्ट 33 से गुम्मट देव मुनि कृत 'मेरूदण्डतंत्र' के नाड़ी परीक्षा, ज्वर निदान आदि अनेक प्रकरण संकलित किए गए हैं। इस के प्रत्येक परिच्छेद के अन्त में पूज्यपाद का सम्मानपूर्वक नामोल्लेख किया गया है। ___ डा. राजेन्द्रप्रकाश भटनागर के अनुसार गोम्मट देव ने अपने 'मेरूतंत्र' नामक वैद्यक ग्रंथ में पूज्यपाद को अपना गुरू बतलाते हुए उनके 'वैद्यामृत' नामक ग्रंथ का उल्लेख निम्न पंक्तियों में किया है - सिद्धान्तस्य च वेदिनो जिनमते जैनेन्द्रपाणिन्य च। कल्पव्याकरणाय ते भगवते देवयालियाराधिपा(?)।। श्री जैनेन्द्रवचस्सुधरसवरैः वैद्यामृतो धार्यते। श्री पादास्य सदा नमोऽस्तु गुरवे श्री पूज्यपादौ मुनेः।। इससे दो बातें स्पष्ट हैं कि श्री गुम्मट देव मुनि श्री पूज्यपाद स्वामी को अपना गुरू मानते थे और उनके द्वारा 'वैद्यामृत' नामक ग्रंथ की रचना की गई थी जो वर्तमान में दृष्टिगम्य नहीं है। श्री विजयण्ण उपाध्याय कृत सारसंग्रह इस ग्रंथ की एक प्रति जैन सिद्धान्त भवन आरा में विद्यमान है जिसकी ग्रंथ संख्या 255 ख है। इस ग्रंथ का उल्लेख पं. के भुजबली शास्त्री द्वारा सम्पादित 'प्रशस्ति संग्रह' तथा “जैन सिद्धन्त भास्कर", भाग-6 किरण-2 में प्रशस्ति के अन्तर्गत किया गया है। श्री पं. के. भुजबली शास्त्री द्वारा दिए गए विवरण के अनुसार यह ग्रंथ राजकीय प्राच्य पुस्तकागार, मैसूर से लिपिबद्ध कराया गया है। वहां की मुद्रित ग्रंथ तालिका में ग्रंथ का नाम अकलंक संहिता और कर्ता का नाम अकलंक भट्ट लिखा मिलता है। किन्तु इसका कोई आधार नजर नहीं आता। ग्रंथ में उल्लिखित निम्न श्लोकों से स्पष्ट है कि इस ग्रंथ का नाम सारसंग्रह है और इसके कर्ता श्री मद्विजयण्णोपाध्याय है -
SR No.538059
Book TitleAnekant 2006 Book 59 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2006
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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