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________________ 114 अनेकान्त 59/1-2 नमः श्री वर्धमानाय निर्धूतकलिलात्मने। कल्याणकारको ग्रंथः पूज्यपादेन भाषितः।। सर्वलोकोपकारार्थ कथ्यते सार संग्रहः। श्री मद्वाग्भट् सुश्रुतादि विमल श्री वैद्यार्णवे। भास्वतसुसारसंग्रह महा भामान्विते संग्रहे ।। मंत्रज्ञैरपलाल्पसद्विजयण्णोपाध्यायसन्निर्मिते। ग्रंधेऽस्मिन् मधुपाकसारविचये पूर्णो भवेन्मंगलम् ।। आयुर्वेदाचार्य श्री पं. विमलकुमार जैन का भी कहना है कि बुन्देलखण्ड में भी मुझे इसकी एक दो प्रतियां दृष्टिगोचर हुई हैं और उन प्रतियों में इसका नाम 'सारसंग्रह' ही मिलता है। पात्रस्वामी या पात्रकेशरी श्री उग्रादित्याचार्य ने अपने ग्रंथ कल्याणकारक में “शल्यतंत्र च पात्रस्वामिप्रोक्तं" (क.का. 20/85) इत्यादि वाक्य के द्वारा इनके द्वारा रचित शल्य तन्त्र सम्बन्धी ग्रंथ का उल्लेख किया है। यह ग्रंथ वर्तमान में उपलब्ध नहीं है। इनके विषय में कहा गया है कि ये दक्षिण के अहिच्छत्र नगर के राज पुरोहित थे। ये समन्तभद्र द्वारा रचित आप्तमीमांसा को पढ़कर अत्यधिक प्रभावित हुए और इन्होंने जैनधर्म अंगीकार कर लिया। ये दिगम्बर थे और बौद्धों के द्वारा प्रतिपादित हेतु के लक्षण का खण्डन करने के लिए इन्होंने पद्मावती देवी की कृपा से 'त्रिलक्षणकदर्थन' नामक ग्रंथ की रचना की थी। जिनेन्द्रगुणस्तुति (पात्रकेसरी स्तोत्र) भी इन्हीं के द्वारा रचित है। जैन शिलालेख संग्रह, भाग-1, पृष्ट 103 के अनुसार श्रवणबेलगोला की मल्लिषेण प्रशस्ति (सन् 128) में इस प्रसंग का निम्न उल्लेख या सन्दर्भ कल्याणकारक के अतिरिक्त कहीं अन्यत्र प्राप्त नहीं होता है। कल्याणकारक ग्रंथ में उद्धृत आचार्य - कल्याणकारक ग्रंथ में श्री उग्रादित्याचार्य ने अपने पूर्ववर्ती कतिपय
SR No.538059
Book TitleAnekant 2006 Book 59 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2006
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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