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अनेकान्त 59/1-2
ग्रंथ 'योगरत्नाकर' में पूज्यपाद के नाम से चिकित्सोपयोगी अनेक रसयोगों को उद्धृत किया गया है जिससे पूज्यपाद द्वारा रचित रसशास्त्र प्रधान किसी विशाल चिकित्सा ग्रंथ के होने का संकेत मिलता है। इसी प्रकार 'वसवराजीयम्' नामक ग्रंथ में भी पूज्यपाद के नाम से अनके रसयोग उद्धृत किए गए हैं। जैसे भ्रमणादि वात रोग में 'गंधक रसायन' नामक योग के अन्त में लिखा है -
अशीतिवातरोगांश्चाशांस्यष्टविधानि च।
मनुष्याणां हितार्थाय पूज्यपादेन निर्मितः।। इसी प्रकार कालाग्निरुद्र रस के पाठ में भी पूज्यपाद के नाम का उल्लेख निम्न प्रकार से किया गया है -
अशीति वातजान् रोगान् गुल्मं च ग्रहणीगदान्।
रसः कालाग्निरूद्रोऽयं पूज्यपादविनिर्मितः।। इसके अतिरिक्त वातादि रोगों में 'त्रिकटुकादि नस्य' के पाठ में "पूज्यपादकृतो योगो नराणां हतकाम्यया”, ज्वरांकुश रस के पाठ में "पूज्यपादोपदिष्टोऽयं सर्वज्वरगजांकुशः।" चण्डभानुरसे- “नाम्नायं चण्डभानुः सकलगदहरो भाषित पूज्यपादैः। शोफमुद्गर रसे “शोफमुद्गरनामाऽयं पूज्यपादेन निर्मितः” इत्यादि।
यदि इन समस्त योगों का संकलन किया जाय तो एक वृहद् ग्रंथ का निर्माण हो सकता है।
गुम्मट देव मुनिकृत मेरूदण्ड तंत्र ___ श्री गुम्मट देव मुनि ने 'मेरूदण्ड तंत्र' नामक ग्रंथ का निर्माण किया था जिसमें आयुर्वेदीय चिकित्सा सम्बन्धी रस योगों का उल्लेख है। इस ग्रंथ में लेखक ने श्री पूज्यपाद स्वामी का आदर पूर्वक स्मरण एवं उल्लेख किया है। वर्तमान में यह ग्रंथ उपलब्ध नहीं है। श्री वर्धमान पार्श्वनाथ शास्त्री ने 'कल्याणकारकः ग्रंथ के अपने सम्पादकीय वक्तव्य में पृष्ट 39 पर इसका उल्लेख किया है। इसके अतिरिक्तश्री विजयण्ण उपाध्याय द्वारा