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________________ अनेकान्त 59/1-2 11 भाषा एवं संस्कृति के मनीषी विद्वान जैनाचार्य जगद्दल सोमनाथ ने की है। उन्होंने पूज्यपाद स्वामी द्वारा लिखित कल्याणकारक ग्रंथ का कन्नड़ में अनुवाद एवं लिप्यन्तरण किया था। इससे स्पष्ट है कि यह ग्रंथ कितना महत्वपूर्ण है? प्रस्तुत ग्रंथ में पीठिका प्रकरण, परिभाषा प्रकरण, परिभाषा प्रकरण, षोडशज्वर चिकित्सा निरूपण प्रकरण आदि का प्रतिपादन विस्तार से किया गया है। कन्नड़ भाषा के प्राचीन वैद्यक ग्रंथों में यह ग्रंथ सर्वाधिक प्राचीन एवं व्यवस्थित है। पूज्यपाद स्वामी और उनके कल्याण कारक ग्रंथ की चर्चा करते हुए एक स्थान पर विद्वत्प्रवर जगद्दल सोमनाथ ने स्पष्ट लिखा है - सुकर तानेने पूज्यपादमुनिगलमुंपेलद कल्याणकारकर्म वाहटसिद्धसारचरकाद्युत्कृष्टतम सदगुणाधिकर्म वर्जितमद्यमांसमधुवं कर्णाटदि लोकरक्षमा चित्रमदागे चित्रकवि सोमं पेल्दनि तलितयिं ।। इसके अतिरिक्त आचार्य विजयण्ण उपाध्याय द्वारा लिखित (संकलित) 'सारसंग्रह' नामक एक ग्रंथ की प्रति जैन सिद्धांत भवन, आरा में सुरक्षित है। इस ग्रंथ में जो मंगलाचरण दिया गया है उसमें स्पष्ट रूप से पूज्यपाद द्वारा कथित (लिखित) कल्याणकारक ग्रंथ का उल्लेख किया गया है। जिससे इस तथ्य की पुष्टि होती है कि पूज्यपाद स्वामी ने कल्याण कारक नामक ग्रंथ की रचना की थी। सारसंग्रह में विहित मंगलाचरण निम्न प्रकार है - नमः श्रीवर्धमानाय निर्धूत कलिलात्मने। कल्याणकारको ग्रंथः पूज्यपादेन भाषितः।। सर्वलोकोपकारार्थ कथ्यते सारसंग्रहः। श्री पूज्यपाद द्वारा लिखित आयुर्वेद के अन्य अनेक ग्रंथों का उल्लेख मिलता है जिनमें से कुछ निम्न हैं- रत्नाकरौषध योग ग्रंथ, भैषज्यगुणार्णव, वैद्यसार, निदानमुक्तावलि, मदन कामरत्न,विद्याविनोद, पूज्यपाद वैद्यक, वैद्यक शास्त्र, नाड़ी परीक्षा आदि। आयुर्वेद के प्रसिद्ध
SR No.538059
Book TitleAnekant 2006 Book 59 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2006
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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