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________________ अनेकान्त-58/1-2 व्यवस्था बदल जायेगी। लोगों का कहना है कि छोटी उम्र में विधवा हो गई जीवन कैसे चलेगा, उनसे मेरा निवेदन है कि जैसा भोग के लिए प्रेरित करते हो वैसा धर्म के लिए भी तो प्रेरित किया जा सकता है। विधवा से पुनः सन्तान उत्पन्न करना कहीं भी नहीं लिखा है। किसी कवि ने कहा भी है सिंहगमन सुपुरुष वचन, कदली फलै न बार। तिरिया तैल हमीर हठ, चढ़े न दूजी बार।। सिंह जिस ओर से भी निकल जाता है, वापिस नहीं लौटता, साधु सज्जन पुरुष जो एक बार बोल देते हैं, उसे ही मानते हैं अपनी बात नही पलटते हैं। इसी प्रकार जिस स्त्री के एक बार विवाह के लिए तेल चढ़ गया सो चढ़ गया फिर कभी दूसरी बार नहीं चढ़ता। हमीर राजा की हठ की भी पुष्टि करने हेतु उदाहरण दिए हैं। जैन पुराणों के अलावा वैदिक संस्कृति भी विधवा विवाह का समर्थन नहीं करती है। मनु स्मृति में विधवाविवाह का निषेध है। नैषधीय चरित में महाकवि हर्ष हंस के माध्यम से इस बात की पुष्टि करते हैं कि पशु पक्षियों में भी सच्चरित्रता की भावना होती है !' ___ विधवा विवाह का समर्थन न तो आगम ने किया न पुराण शास्त्र करते हैं किन्तु प्रेमी जी जैसे कुछ सुधारवादी मधु और चन्द्रा का उदाहरण लेकर पुष्टि करने की कोशिश करते हैं क्या एक स्त्री-पुरुष ने दोष पाप किया तो सभी को उस पाप प्रवृत्ति में प्रवृत्त होना चाहिए विधवा भुक्त होने के कारण दोष युक्त तो है ही। कुछ लोगों का कहना है कि यदि पुरुष दूसरी शादी कर सकता है, तो स्त्री क्यों नहीं कर सकती है इस पर जैनाचार्यों ने कहा है कि पुरुष स्वर्ण घट सदृश है और स्त्री मृतिका घट रूप है। पुरुष छोड़ने वाला है और स्त्री गृहीता है अतः पुरुष दोष युक्त न होकर स्त्री ही दोष युक्त होती है इसीलिए पुनर्विवाह की अधिकारिणी नहीं है। मनुष्यों की क्रिया में शुद्ध होने पर भी यदि उनके आप्त आगम निर्दोष नहीं
SR No.538058
Book TitleAnekant 2005 Book 58 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2005
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size9 MB
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