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अनकान्त-58/1-2
प्राणायाम पूजनं अर्घ्यप्रदानं च यथोचितम् ।। त्रिसन्ध्यं देवतास्तोत्रं जपः शास्त्रश्रुतिः स्मृतिः। भावना चानुप्रेक्षाणां तथात्म प्रतिभावनाः।। पात्रदानं यथाशक्ति चैकभक्तमगृद्धितः।
ताम्बूलवर्जनं चैव सर्वमेतद्विधीयते ।। अर्थात् उस विधवा स्त्री को देशव्रत रूप अणुव्रत ग्रहण करना चाहिए। गले एवं कानों के आभूषणों का त्याग करना चाहिए। सभी प्रकार की आभूषणों का त्याग करना चाहिये। शरीर पर पहनने ओढ़ने के दो वस्त्र रखे पलंग पर नहीं सोना/आखों मे काजल न लगावे हल्दी का उवटन लगाकर स्नान नहीं करना। शोकपूर्ण रुदन न करे विकथा का त्याग करे। प्रातःकाल स्नान कर सन्ध्यवन्दन नित्य करे। प्राणामाम करे। पूजा करे अर्घ्यप्रदान करे त्रिकाल भगवान् के स्तोत्र पढ़े। जप करे शास्त्र पढ़े अनुप्रेक्षा का चिन्तवन करे, आत्म भावना भावे, प्रतिदिन पात्रदान यथाशक्ति करे। रसों को छोड़कर एकासन करे। पान खाना छोड़े और धर्मध्यान से ब्रह्मचर्य पूर्वक रहे।
यहाँ पर स्पष्ट रूप से बताया गया है कि स्त्री को पति के मर जाने के बाद कैसे रहना चाहिए? अब पति के मरने क्या करना चाहिए के उत्तर आचार्य कहते हैं
विधवा यास्ततो नार्या जिनदीक्षा समाश्रयः।
श्रेयानुतस्विद्वैधव्य दीक्षा व गृह्यते तदा।। 198 ।। जो विधवा स्त्री है, उसे शीघ्र जिनदीक्षा ग्रहण करना चाहिए। आर्यिका बनना ही श्रेयस्कर है अन्यथा जघन्य पक्ष वैधव्यदीक्षा ग्रहण करना चाहिए।
शास्त्रों में उल्लेख मिलते हैं, जो विधवाएं हुई उन्होंने जिनदीक्षा ग्रहण की है। रावण की मृत्यु होने पर मन्दरोदरी आदि 48 हजार स्त्रियों ने आर्यिका दीक्षा ग्रहण की थी।
आगम में कहीं भी दूसरे पति वाली स्त्री को सती नहीं कहा गया है यदि कहीं कहा गया हो तो उसे समर्थक बताये। इसके समर्थन से तो आगम