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________________ अनेकान्त-58/1-2 में वर्ण संकरता और जाति संकरता दोपों की परवाह न कर अनेक आगम से प्रतिकूल लेख लिखे। उन्होंने रक्त शुद्धि पर विचार ही नहीं किया जबकि कर्मभूमि के प्रारम्भ में युगल उत्पत्ति न रहने के कारण रक्त शुद्धि बनाये रखने के लिए वर्ण व्यवस्था बनी। वर्ण और जाति निश्चित किये गये और उनके कार्यो को भी निश्चित किया गाय। युग के अन्त में प्रलयकाल के समय देव और विद्याधर कुछ जोड़ों को विजया सुरक्षित करते हैं उन्हीं में से तीर्थङ्कर और शलाका पुरुषों की परम्परा चलती है यह अनाद्य परम्परा है शास्त्रों में वर्णित अनाद्यनन्त परम्परा के विपरीत । ‘प्रेमी' जी ने 'विधवा विवाह' का आगम की उपेक्षा कर समर्थन किया है। लेखन के माध्यम से ही समर्थन नहीं किया अपित् जैन समाज के मध्य इसके प्रचार-प्रसार के लिए आन्दोलन भी किये हैं। उनकी इस प्रवृत्ति के लिए स्वार्थ भावना वलवती रही है क्योंकि उनके लघुभ्राता सेठ नन्हेलाल जैन की पत्नी का असमय में निधन हो गया था। अपने भाई को विधुर नहीं देख सकने के कारण 8 दिसम्बर 1928 को एक 22 वर्षीया विधवा के साथ विधुर भाई का विवाह कराकर अपने विचारों को अमली वाना पहिनाया। आगम के पक्षघर लोगों को या कहिये धर्ममीरू जनों को नीचा दिखाने हेतु सागर (म. प्र.) के जन बहुल क्षेत्र चकराघाट पर एक सुसज्जित मण्डप बनवाया गया हजारों लोगों को एकत्रित किया गया और अनेक सुधारवादी लोगों के वक्तव्य कराये गये और अनन्तर देवरी में प्रेमी जी ने 12 दिसम्बर 1928 को एक प्रीतिभोज का भी आयोजन किया उस अवसर पर अनेक जैनेतर लोगों से समर्थन में भाषण दिलाये गये। सभापति के पद से म्युनिसिपैलिटी के अध्यक्ष पं. गोपाल राव रामले ने विधवा विवाह के समर्थन में व्याख्यान दिया और ग्राम वासियों ने उनका अभिनन्दन भी किया। प्रेमी जी द्वारा विधवा विवाह का समर्थन चाहे लोकैषणा से किया गया हो या उनको अपना हित साधन करने हेतु करना पड़ा हो किन्तु जिनागम के अध्येता के द्वारा किया गया यह कार्य उचित नहीं है क्योंकि जैन शास्त्रों में कहीं भी उक्त कार्य का समर्थन नहीं है। निषेघ के प्रमाण अवश्य मिलते हैं।
SR No.538058
Book TitleAnekant 2005 Book 58 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2005
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size9 MB
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