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________________ अनेकान्त-58/1-2 अन्यथा धनहीनों में चोरी के भाव जागते हैं, जागे हैं चोरी मत कर, चोरी मत करो यह कहना केवल धर्म का नाटक है उपरिल सभ्यता उपचार चोर इतने पापी नहीं होते जितने कि चोरों को पैदा करने वाले तुम स्वयं चोर हो चोरों को पालते हो और चोरों के जनक भी।” 26 85 शेक्सपियर ने लिखा है कि- Gold is worse pain on the man in souls doing more murders in this world than any mortal drug. अर्थात् सोना (स्वर्ण) मनुष्य की आत्मा को अत्यधिक रूप से दुखी करता है । किसी मरणदायक औषधि की अपेक्षा सोने के कारण संसार में अधिक हत्यायें हुई हैं। अपने यहाॅ कहावत है कि 'बुभुक्षितः किन्नु करोति पापं । अर्थात् भूखा मनुष्य क्या पाप नही करता? मुट्ठी भर लोगों के हाथ में पूंजी व अन्य सामग्री संगृहीत होकर जनता को त्रस्त करती हैं; जिसका परिणाम बड़ा भयंकर होता है। भूखा व्यक्ति सत्य-असत्य ओर हिंसा-अहिंसा के भेद को भूल जाता है । एक कवि ने लिखा है कि भूखे फकीर ने तड़पकर कहा सत्य की परिभाषा बहुत छोटी है केवल एक शब्द रोटी है । परिग्रह परिमाण अपने लिए ही नहीं बल्कि प्राणी मात्र के उपकार के लिए
SR No.538058
Book TitleAnekant 2005 Book 58 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2005
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size9 MB
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