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अनेकान्त-58/1-2
स्वामी की इस प्रतिमा की कमनीय काया का अंकन इसकी प्राचीनता को स्वतः ही प्रमाणित करता है, जो पाषाण में प्राण का जीवन्त प्रमाण है। महावीर की यह प्रतिमा ध्यानावस्था में है जिसमे पुनर्जन्म व मृत्यु से मुक्ति के भाव परिलक्षित होते है। प्रतिमा की ग्रीवा में सलवटे व कन्धे को छूते दोनों लम्बकर्ण कलाकार की दार्शनिक चेतना के प्रमाण है। प्रतिमा के शीश जूट पर धुंघराले केशों का अंकन बड़ा ही सुन्दर बना हुआ है वही दोनो हाथ पद्मासन पादप पर ध्यानावस्था में रखे हुए है। __ महावीर स्वामी की इस अनुपमेय प्रतिमा के श्रीमुख के पृष्ठ में सुन्दर व द्विआयामी गोलाकार आभामण्डल दर्शाया गया है जिसके शीर्ष पर एक लघु पदमासन जिन प्रतिमा बनी हई है-प्रतिमा को देखते ही मन में भक्ति और वैराग्य के भाव उत्पन्न होते हैं। इस प्रतिमा के नीचे दांयी तथा बांयी ओर दो लघु बैठी हुई सिहांकृतियाँ लांछन रूप में एक-दूसरे की विपरीत मुखावलि में बनी हुई हैं। महावीर स्वामी की इस प्रतिमा के दोनो पदमासन पैरों के नीचे दो पुरुषाकृतियाँ बनी है जो महावीर के आसान का भार उठाने का उपक्रम किये हुए है। प्रतिमा के दोनों घुटनो के पृष्ठ में दो सुन्दर लघु खड़गासन मुद्रा में सुन्दर जिन प्रतिमाएँ है वहीं प्रतिमा के दोनो कन्धों के ऊपर दो लघु पद्मासन जिन मूर्तियाँ तपस्या तल्लीन मुद्रा में उकरी हुई हैं। सारतः महावीर स्वामी की इस सुन्दर और प्राचीन प्रतिमा में उनका मुख और ध्यानावस्था के हाथ खण्डित होने के बावजूद भी प्रतिमा पर्यटकों, शोधार्थियों व पुरातत्वविदो के लिये अध्ययन व अवलोकन की दृष्टि से अति महत्वपूर्ण है।
इस प्रतिमा के निकट एक प्राचीन देवालय की खण्डित उतरांग पटिटका हैं जिसमें उनके लघु पद्मासन स्वरूप में जैन मूर्तियाँ कलात्मकता से बनी हुई हैं। डेढ़ मीटर लम्बे व आधे मीटर चौड़े लाल पाषाण खण्ड में मध्य में एक सुन्दर लघु पद्मासन जिन मूर्ति है जिसका मुख व आभामण्डल विकृत होने के बावजूद भी शरीर सौष्ठव काफी सुन्दर है। इसी क्रम में दुर्ग के दरीखाने के मध्य चौक में दो फीट लम्बे व एक फीट चौड़े काले-भूरे पाषाण खण्ड पर एक सुन्दर दिगम्बर जैन प्रतिमा खड्गासन मुद्रा में तपस्या रत है। इस प्रतिमा की मुखाकृति पूर्णतया भग्न होने पर भी इसका कला सौष्ठव अति सुन्दर है। इस प्रतिमा को कलाकार ने बड़ी ही तन्मयता से उकेरा है इसकी कला ही इसकी