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"गागरोन की प्राचीन, अप्रकाशित जैन प्रतिमाएँ"
___-ललित शर्मा राजस्थान के दक्षिण-पूर्व में स्थित झालावाड़ जिला अपने प्राचीन भू-भाग में अनेक धर्मो की संस्कृति के अवशेषो के साथ जैन धर्म की संस्कृति के भी कई आयामों को समाहित किये हुए है। मुख्यालय झालावाड़ से उत्तर की ओर चार कि.मी. दूर आइ-और काली सिन्ध नदी के तट पर 9वीं सदी का एक प्राचीन गागरोन दुर्ग है। यह दुर्ग प्राचीन दुर्गी की 'जल दुर्ग' श्रेणी का उत्तरी भारत में एक मात्र दुर्ग है। दिल्ली-मुम्बई बडी रेलवे लाईन के मध्य-कोटा-जक्शंन से इस स्थल की दूरी मात्र 85 कि. मी. है तथा दक्षिण में उज्जैन-इन्दौर मार्ग पर स्थित है। कोटा से बस मार्ग द्वारा झालावाड़ होकर इस दुर्ग तक आसानी से पहुंचा जा सकता है। वायु मार्ग से इस स्थल पर पहुंचने के लिये यहां का निकटतम हवाई अड्डा राजस्थान राज्य की राजधानी जयपुर अथवा मध्य-प्रदेश की औद्योगिक नगरी 'इन्दौर' है। दोनों स्थानो से बस मार्ग द्वारा झालावाड़ आसानी से पहुंचा जा सकता है।
कुछ समय पूर्व मैं पुरातात्विक शोध के दौरान गागरोन-दुर्ग में अपने मित्र श्री निखिलेश सेठी (फर्म-विनोदराम-बालचन्द, विनोद भवन, झालरापाटन) के साथ गया। शोध के दौरान मुझे वहाँ के खण्डहरो और दीवारों में कुछ ऐसी सुन्दर व कलात्मक जैन प्रतिमाएँ मिली जिनकी ओर आज तक किसी पुरातत्वविद, शोधार्थी का ध्यान ही नही गया था। इसलिये ये प्रतिमाएँ आज तक अप्रकाशित रहीं जो समय, धूप, पानी, हवा की मार सहकर आज भी प्राचीन संस्कृति की शिल्प कला की अनुपम थाती हैं। इन दुर्लभ, प्राचीन और अप्रकाशित प्रतिमाओ का परिचय इस प्रकार है। यथा
गागरोन दुर्ग में प्राचीन भैरवपोल के उत्तर की ओर दुर्ग की लम्बी दीवार की एक बुर्जी में बरसों से चुनी हुई महावीर स्वामी की एक सुन्दर प्रतिमा शोध अध्ययन की दृष्टि से उपयोगी है। यह प्रतिमा डेढ़ फीट लम्बे व एक फीट चौड़े भरे व पीतवर्णी पाषाण खण्ड पर बनी हुई है। पद्मासन महावीर