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________________ अनेकान्त-58/1-2 ज वदण तियाल कीरइ सामायिय त खु।। 17 रत्नकरण्डश्रावकाचार 140 18. मूलफल-शाक-शाखा-करीर-कन्द-प्रसून बीजानि। ___नामानि योऽत्ति सोऽय सचित्तविरतो दयामूर्ति ।। रत्नकरण्ड श्रावकाचार 141 19. अन्नं पानं खाद्यं लेां नाश्नाति यो विभावर्याम् । स च रात्रिभुक्तिविरत. सत्वेष्वनुकम्पमानमना ।। रत्नकरण्ड श्रावकाचार 142 20. सागारधर्मामृत 7/12 21 वसुनन्दि, पं. आशाधर आदि 22. रलकरण्ड श्रावकाचार 143 23 वही 144 24 धर्मप्रश्नोत्तर श्रावकाचार श्लोक 107 25. रत्नकरण्डश्रावकाचार 145 -रीडर-संस्कृत विभाग दिगम्बर जैन कॉलेज, बड़ौत (बागपत) आपदां कथितः पन्थाः इन्द्रियाणामसंयमः। तज्जयः संपदां मार्गो येनेष्टं तेन गम्यताम्।। –'आपदाओं का-दुःखों का-मार्ग है इन्द्रियों का असंयम; और इन्द्रियों को जीतना-उन्हें अपने वश में रखना-यह सम्पदाओं का-सुखों का मार्ग है। ___जो मार्ग इष्ट हो उसी पर चलो।' -
SR No.538058
Book TitleAnekant 2005 Book 58 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2005
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size9 MB
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