SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 73
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अनेकान्त-58/1-2 धारण करता है। अपने निमित्त से बने हुए आहार को ग्रहण नहीं करता है, वह उद्दिष्ट आहार त्यागी श्रावक कहलाता है। उक्त ग्यारह प्रतिमाओं का संक्षिप्त विवेचन गृहस्थ धर्म की विशिष्टता के कारण किया गया है। 1. मूलोत्तरगुणनिष्ठामधितिष्ठन् पञ्चगुरुपदशरण्यः। ___ दानयजनप्रधानो ज्ञानसुधां श्रावक. पिपासुः स्यात्। सागारधर्मामृत 1/15 2. श्रावकधर्मप्रदीपिका गा ? 3. श्रद्धालुतांश्रातिशृणोति शासन दीने वपेदाशु वृणोति दर्शनम्। कृतत्वपुण्यानि करोति संयम त श्रावक प्राहुरमी विचक्षणाः ।। 4 प्राणान्तेऽपि न भक्त्व्यं गुरुसाक्षि श्रितं व्रतम् । प्राणान्तसतत्क्षणे दुःख व्रतभङ्गे भवे भवे।। सागरधर्मामृत 7/52 5. प्रतिमा प्रतिपत्ति प्रतिज्ञेतियावत् स्थानांग वृत्ति पृष्ठ 61 संसार शरीर भोगो से विरक्ति पूर्वक विषय कषायो की निवृत्ति और आत्मस्वरूप में प्रवृत्ति का नाम प्रतिमा है। 6. संयम अंश जग्यौ जहाँ, भोग अरुचि परिणाम। उदय प्रतिज्ञा को भयौ प्रतिमा ताकौ नाम।। बनारसीदास 7. दसण वय सामाइय पोसहसचित्त राइभत्ती य। बम्भारम्भपरिग्गह अणुमण उद्दिट्ठदेशाविरदे दे।। चारित्रपाहुड़ गा. 21 8. कार्तिकेयानुप्रेक्षा में (धर्मानुप्रेक्षा के अन्तर्गत) 9. श्रावकपदानि देवैरेकादश देशितानि येषु खलु। स्वगुणाः पूर्वगुणैः सहसतिष्ठन्ते क्रमविवृद्धाः।। 10. सागारधर्मामृत 17/1 11. समयसार अध्यात्मकलश 12. सम्यग्दर्शनशुद्धा ससारशरीरभोगनिर्विण्णः । पञ्चगुरुचरणशरणो दार्शनिकस्तत्त्वपथगृह्य ।। रत्नकरण्डश्रावकाचार 13. रत्नकरण्ड श्रावकाचार 138 14 वही 139 15. सुदृड् मूलोत्तरगुण ग्रामाभ्यासविशुद्धधीः । भजस्त्रिसध्यं कृच्छ्रेऽपि साम्यं सामायिकी भवेत् ।। 16/1 16. जिनणवयणधम्मचेइयपरमेट्ठिजिणालयाण णिच्चं पि।
SR No.538058
Book TitleAnekant 2005 Book 58 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2005
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy