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अनेकान्त-58/1-2
प्रकार देखता हुआ उससे विरक्त होता है, वह ब्रह्मचर्य प्रतिमा का धारी श्रावक है। इस प्रतिमा का धारी सभी स्त्रियों का त्यागी होता है। सभी से तात्पर्य देवांगना, तिर्यञ्चिनी और मनुष्य स्त्रियों से है साथ में इनकी प्रतिकृतियों से भी है। इनका सेवन मन, वचन, काय से नहीं होना चाहिए। ब्रह्मचर्यप्रतिमा के धारक की बहुत प्रशंसा की गयी है निरतिचार ब्रह्मचर्य का पालन करने वालों का नाम लेने मात्र से ब्रह्मराक्षस आदि क्रूर प्राणी भी शान्त हो जाते हैं, देवता भी सेवकों की तरह व्यवहार करते हैं तथा विद्या ओर मंत्र सिद्ध हो जाते हैं। निरतिचार ब्रह्मचर्य का पालन करने से आत्मा की अनन्त शक्ति बढ़ जाती है अतः परद्रव्य से हटकर आत्मरमण करने के लिये इस व्रत का नवकोटि पालन करना चाहिए।
आरम्भत्यागप्रतिमा - आरम्भ शब्द एक पारिभाषिक शब्द है जिसका अर्थ है हिंसात्मक क्रिया। श्रमणोपासक संकल्प पूर्वक त्रस जीवों की हिंसा नहीं करता किन्तु कृषि वाणिज्य अन्य व्यापार में जो षट्काय के जीवों की हिंसा संभव है/होती ही है अतः उसका त्यागी होता है। यहाँ इतना विशेष है कि वह स्वयं आरम्भ का त्यागी होता है किन्तु सेवक आदि से आरम्भ कराने का त्याग नहीं करता उसका आरम्भ का त्याग एक करण तीन योग से होता है। आचार्य सकलकीर्ति ने आठवीं प्रतिमाधारी को रथादि की सवारी के त्याग का भी विधान किया है। __ परिग्रहत्यागप्रतिमा - जो श्रावक क्षेत्र-वास्तु, धन-धान्य हिरण्य-स्वर्ण दासी-दास और कुप्यभाण्ड इन दस बाह्य परिग्रहों में ममता छोड़ निर्ममत्वभाव से आत्मस्थ हो सन्तोष धारण करता है वह बाह्य परिग्रह से विरक्त नवीं प्रतिमा का धारक श्रावक होता है।
अनुमतित्यागप्रतिमा - जिस श्रावक की किसी प्रकार के आरम्भ अथवा परिग्रह में या ऐहिक कार्यो में अनुमोदना नहीं रहती उसे समबुद्धि अनुमति त्यागी श्रावक कहा है। 25
उद्दिष्टत्यागप्रतिमा' - जो श्रावक अपने घर से मुनिवन को जाकर गुरु के समीप में व्रतों को ग्रहण करके भिक्षावृत्ति से आहार ग्रहण करता है। चेल खण्ड