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अनेकान्त-58/1-2
जिस वनस्पति के जन्तु प्रत्यक्ष से नहीं देखे जाते हैं केवल आगम से ही जाने जाते हैं, वे प्राण जाने पर भी उसे नहीं खाते हैं। ___ शीलों के वर्णन प्रसंग में भोगोपभोगपरिमाण नामक शील के अतिचार रूप से जो सचित्तभोजन व्रत प्रतिमाधारी के लिये त्याज्य कहा था खाये जाने वाले सचित्त द्रव्य में रहने वाले जीवों के मरण से पञ्चम प्रतिमा धारक श्रावक उस सचित्त भोजन को व्रत रूप से त्याग देता है।
आचार्य समन्तभद्र के अनुसार इस प्रतिमा वाला वनस्पति का त्यागी होता है किन्तु पण्डित आशाधर जी उसे अप्रासुक का त्यागी कहते हैं यह उत्तरवर्ती विकास है।
रात्रिभुक्तित्यागप्रतिमा – जो रात्रि में अन्न, पान, खाद्य और लेह्य इन चार प्रकार के आहारों को प्राणियों पर अनुकम्पाशील होकर नहीं खाता है वह रात्रिभुक्तिविरत श्रावक है।' पण्डित आशाधर इसे रात्रिभक्त व्रत प्रतिमा नाम देते हैं उन्होंने कहा है “जो पूर्वाक्त पांच प्रतिमाओं के आचार में पूरी तरह से परिपक्व होकर स्त्रियों से वैराग्य के निमित्तों में एकाग्रमन होता हुआ मन-वचन-काय और कृत-कारित-अनुमोदना से दिन में स्त्री का सेवन नहीं करता वह रात्रिभक्तव्रत होता है। 20 रात्रि में भी ऋतुकाल में ही सेवन करता है। पर्व के दिनों का त्यागी होता है किन्तु प्रतिमाधारी कृत, कारित, अनुमोदना के साथ मन वचन काय से रात्रि भोजन का त्यागी होने का अर्थ नवकोटि से नियम का पालक होता है।
जिन आचार्यो' ने दिवामैथुनत्याग या रात्रिभक्तव्रत नाम दिया है और दिन में स्त्री का त्याग बतलाया है, उनके पक्ष में भी यही है कि इससे पांच प्रतिमाओं के पालन करते समय भी दिन में स्त्री भोग का त्याग होता है किन्तु इस प्रतिमा का पालक नवकोटि से पालन करता है। हास विनोद का भी दिन में त्याग करता है।
ब्रह्मचर्यप्रतिमा - जो पुरुष स्त्री के कामाङ्ग को यह मल का बीज है, मल की योनि है, निरन्तर मल झरता रहता है, दुर्गन्धयुक्त है और वीभत्स है। इस