________________
अनेकान्त-581-2
67
होता है जैसा कि पण्डित आशाधर जी कहते हैं-- निरतिचार सम्यग्दर्शन तथा मूलगुण और उत्तरगुणों के समूह के अभ्यास से जिसकी बुद्धि अर्थात् ज्ञान विशुद्ध हो गया है तथा जो परिग्रह और उपसर्ग के आने पर भी तीनों सन्ध्याओं में साम्यभाव धारण करता है, वह श्रावक सामायिक प्रतिमा वाला होता है। 15 आचार्य वसुनन्दि जिनशास्त्र, जिनधर्म, जिनचैत्य, परमेष्ठी तथा जिनालयों की तीनों काल में जो वन्दना की जाती है उसे सामायिक कहते हैं। 16 सामायिक का उत्कृष्ट काल छः छड़ी है और जघन्यकाल दो घड़ी का है। सामायिक समताभाव जागृत करने में पूर्ण सहायक होती है।
प्रोषध प्रतिमा - प्रत्येक मास की दो अष्टमी और दो चतुर्दशी इन चारों पर्वो में अपनी शक्ति को नहीं छिपाकर सावधान हो प्रोषधोपवास करने वाला प्रोषध नियम विधायी श्रावक कहलाता है।'' प्रोषध व्रत का धारक सोलह प्रहर का भी उपवास करता है। यह उत्कृष्ट उपवास होता है। मध्यम श्रावक द्वारा बारह प्रहर और जघन्य श्रावक द्वारा आठ प्रहर का भी उपवास किया जाता है। उस समय आचाम्ल निर्विकृति आदि से भी प्रोषध की साधना की जाती है। इसमें कुछ शिथिलता भी होती है किन्तु प्रतिमा में किसी भी प्रकार की कोई शिथिलता नहीं होती है। प्रतिमा निरतिचार होती है। यदि शरीर स्वस्थ है तो सोलह प्रहर का ही उपवास करना चाहिए। अस्वस्थता में बारह और आठ प्रहर का उपवास किया जा सकता है। प्रोषधोपवास के दिन गृहस्थ श्रावकश्रमण के समान आरम्भ आदि का परित्याग कर धर्मध्यान करता है।
सचित्तत्यागप्रतिमा - जो दयामूर्ति श्रावक कच्चे कन्दमूल, फल, शाक, शाखा, बेर, कन्द, फूल और बीजों को नहीं खाता है, वह सचित्तत्याग प्रतिमाधारी है। 18 इस प्रतिमाधारी की प्रशंसा करते हुए प. आशाधर जी ने कहा है
अहोजिनोक्तिनिर्णीतरहो अक्षजितिस्सताम्। नालक्ष्यजन्त्वपि हरित् प्यान्येतेऽसुक्षयेऽपि यत् ।। सा. धर्म. 7/10
सचित्तत्याग के लिये सावधान सज्जन पुरुषों का जिन भगवान् के वचनों पर निश्चय आश्चर्यकारी है, इनका इन्द्रियजय विस्मय पैदा करता है क्योंकि