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________________ अनेकान्त-58/1-2 जिनसेन, पद्मनन्दी, अमृतचन्द्र आदि ने श्रावक के व्रतों का चिन्तन किया है किन्तु प्रतिमाओं के सम्बन्ध में उल्लेख भी नहीं किया है। ___ पञ्चम गुणस्थानवर्ती श्रावक द्रव्य और भाव रूप से ग्यारह प्रतिमाओं का पालन करना हुआ निरन्तर महाव्रतों के पालन की लालसा करता है। निश्चित ही वह प्रशंसनीय है रागादिक्षयतारतम्यविकच्छुद्धात्मसंवित्सुखस्वादात्मस्वबहिर्बहिस्त्रसबधाचंहोहोव्यपोहात्मसु । सदगुदर्शनकादिदेशविरतिस्थानेषु चैकादशस्वेकं यः श्रयते यतिव्रतरतस्तं श्रद्दधे श्रावकम् ।। 46 ।। सागारधर्मामृत देशविरत के दार्शनिक आदि ग्यारह स्थान अन्तरंग में राग आदि के क्षय से प्रकट हुई शुद्ध आत्मानुभूति रूप सुख या उससे उत्पन्न हुए सुख के स्वाद को लिए हुए हैं और बाह्य में त्रस हिंसा आदि पापों से विधिपूर्वक विरति को लिए हैं। दिगम्बर परम्परा में मान्य इन प्रतिमाओं का रूप ही श्वेताम्बर साहित्य में कुछ नाम और क्रम परिवर्तन के साथ मिलता है, जो इस प्रकार है- (1) दर्शन, (2) व्रत, (3) सामायिक, (4) पौषध, (5) नियम, (6) ब्रह्मचर्य, (7) सचित्तत्याग, (8) आरम्भत्याग, (9) प्रेष्यपरित्याग अथवा परिग्रहपरित्याग, (10) उद्दिष्टभक्तत्याग, (11) श्रमणभूत प्रथम चार प्रतिमाओं के नाम दोनों परम्पराओं में समान हैं। सचित्तत्याग का क्रम दिगम्बर परम्परा में पांचवाँ है, तो श्वेताम्बर परम्परा में सातवाँ है। दिगम्बर परम्परा में रात्रिभुक्तित्याग को स्वतन्त्र प्रतिमा गिना है जबकि श्वेताम्बर परम्परा में पांचवी नियम में उसका समावेश है। ब्रह्मचर्य का क्रम श्वेताम्बर परम्परा में छठा है तो दिगम्बर परम्परा में सातवाँ है। दिगम्बर परम्परा में अनुमतित्याग दसवीं प्रतिमा है। श्वेताम्बरों में उद्दिष्टत्याग में इसका समावेश किया है। श्वेताम्बर परम्परा में ग्यारहवीं प्रतिमा का नाम श्रमणभूत है क्योंकि श्रावक का आचार श्रमण सदृश माना है। दिगम्बर परम्परा में
SR No.538058
Book TitleAnekant 2005 Book 58 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2005
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size9 MB
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