SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 41
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अनेकान्त-58/1-2 महनीय एवं मननीय कृति : इष्टोपदेश - ___ आचार्य पूज्यपाद कृत इप्टोपदेश में कुल 51 श्लोक हैं। श्लोक परिमाण की दृष्टि से यह लघुकाय कृति है किन्तु इसमें भरे हुए अध्यात्म रस के कारण यह महनीय कति है। इसका विषय आत्म स्वरूप सम्बोधन है। ग्रन्थ के नाम 'इष्टोपदेश' के विषय में ग्रन्थ के अन्त में आचार्य पूज्यपाद ने स्वयं लिखा है कि इष्टोपदेशमति सम्यगधीत्य धीमान् मानापमानसमतां स्वमताद्वितन्य। मुक्ताग्रहो विनिवसन्सजने वने वा मुक्तिश्रियं निरूपमामुपयाति भव्यः।।' अर्थात् बुद्धिमान् भव्य पुरुष इस प्रकार इष्टोपदेश ग्रंथ को अच्छी तरह पढ़कर के अपने आत्मज्ञान से मान-अपमान के समताभाव को फैलाकर आग्रह को त्यागता हुआ गाँव आदि में अथवा वन में निवास करता हुआ उपमा रहित मुक्ति लक्ष्मी को प्राप्त करता है। ___ जो हमारे लिए इष्ट हो; उसका उपदेश इस ग्रंथ में मिलता है। इष्ट वही होता है जिससे आत्मा का हित होता है। उपदेश भी वही सार्थक एवं कार्यकारी माना जाता है जो लक्ष्य का स्मरण कराकर लक्ष्य तक पहुँचने की प्रेरणा दे सके। इस दृष्टि से इष्टोपदेश कृति की अपनी महत्ता है। डॉ. नेमिचन्द्र ज्योतिषाचार्य के अनुसार- 'इसकी रचना का एकमात्र हेतु यही है कि संसारी आत्मा अपने स्वरूप को पहचानकर शरीर, इन्द्रिय एवं सांसारिक अन्य पदार्थो से अपने को भिन्न अनुभव करने लगे। असावधान बना प्राणी विषय भोगों में ही अपने समस्त जीवन को व्यतीत न कर दे।' 5 "इस ग्रन्थ के अध्ययन से आत्मा की शक्ति विकसित हो जाती है और स्वात्मानुभूति के आधिक्य के कारण मान-अपमान, लाभ, हर्ष-विषाद आदि में समताभाव प्राप्त होता है। संसार की यथार्थ स्थिति का परिज्ञान प्राप्त होने से राग-द्वेष, मोह की परिणति घटती है। इस लघुकाय ग्रन्थ में समयसार का सार
SR No.538058
Book TitleAnekant 2005 Book 58 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2005
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy