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________________ अनेकान्त-58/1-2 आचार्य देवसेन26 पण्डितप्रवर आशाधर 27 और कवि राजमल्ल आदि ने तीन मकारों और पञ्च उदम्बर फलों का त्याग- इन आठ को ही श्रावकों के मूलगुण कहा है। इतना ही नहीं हिन्दी भाषा में लिखित कवि पद्मकृत श्रावकाचार", किशनसिंहकृत क्रियाकोप और दौलतरामकत क्रियाकोप" में भी उपर्युक्त तीन मकारों और पञ्च उदम्बर फलों के त्याग को ही अप्ट मूलगुण कहा है। पण्डितप्रवर आशाधर ने अपने सागारधर्मामृत में क्वचित् के नाम से जिन अष्टमूलगुणों का उल्लेख किया है, वे इस प्रकार हैं- मद्य त्याग, मांस त्याग, मधु त्याग, रात्रि भोजन त्याग, पञ्चोदम्बरफल त्याग, देव वन्दना, जीव दया और जलगालन। 32 श्रावक के इन अष्ट मूलगुणों पर भी विद्वानों को विचार करना चाहिये। आचार्य समन्तभद्र ने श्रावक द्वारा स्वीकृत अणुव्रतों की रक्षा के लिये तीन गुणव्रतों और चार शिक्षाव्रतों का उल्लेख किया है। इन दोनों को मिलाकर सप्तशील भी कहते हैं। आचार्य उमास्वामी ने सप्तशीलों का एक साथ कथन किया है। 33 उन्होंने सप्तशीलों को पृथक्-पृथक् गुणव्रत और शिक्षाव्रत जैसे भेदों में विभाजित नहीं किया है। शील शब्द का प्रयोग भी उन्होंने अतिचारों का उल्लेख करने से पूर्व किया है- व्रतशीलेषु पञ्च पञ्च यथाक्रमम् । जबकि आचार्य समन्तभद्र ने न केवल विभाजन किया है, अपितु भिन्न-भिन्न परिच्छेदों में भी उनका विवेचन किया है। उमास्वामी ने दिग्व्रत, देशव्रत और अनर्थदण्ड विरति- इन तीन का सप्तशीलों के अन्तर्गत प्रारम्भ में उल्लेख किया है। अतः प्रथम इन तीन को गुणव्रतों और बाद के चार को शिक्षाव्रतों की संज्ञा दी जाये तो स्वामी समन्तभद्र ने जिन गुणव्रतों का उल्लेख किया है, उनमें भेद प्रतीत होता है। अर्थात् उमास्वामी के अनुसार उपभोगपरिभोगपरिमाणव्रत शिक्षाव्रत है, जबकि आचार्य समन्तभद्र के अनुसार वह गुणव्रत है। उमास्वामी ने जिसे उपभोग कहा है वह आचार्य समन्तभद्र के अनुसार भोग है। जिसे उमास्वामी ने परिभोग कहा है, वह स्वामी समन्तभद्र के अनुसार उपभोग है। स्वामी समन्तभद्र ने भोग और उपभोग की स्पष्ट परिभाषा दी है
SR No.538058
Book TitleAnekant 2005 Book 58 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2005
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size9 MB
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