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________________ 30 अनेकान्त-58/1-2 कर तदनुसार आचरण करे और अन्त में द्रव्यानुयोग का स्वाध्याय कर आत्मतत्त्व का चिन्तन करे। इस क्रम से अनुयोगों का स्वाध्याय करने वाला एक सामान्य व्यक्ति भी अपनी धार्मिक यात्रा प्रारम्भ कर अपनी मंजिल को प्राप्त कर सकता है। ___मोक्षमार्ग की यात्रा का अन्तिम पड़ाव चारित्र है। इसके बिना अनन्त आनन्द के सागर सिद्धत्व पद की प्राप्ति असम्भव है। चारित्र के जिन दो भेदों-सकल संयम और विकल संयम का उल्लेख किया गया है, उनमें जीवन को मुक्ति तो सकलसंयम से ही होगी, किन्तु सभी जीवों में एक समान शक्ति नहीं होती है। अतः जो शक्ति सम्पन्न हैं वे थोक में सदाचरण करने हेतु सकलसंयम धारण करते हैं और जो अल्पशक्ति वाले हैं, वे फुटकर-फुटकर व्रतों का पालन करने हेतु विकलसंयम धारण करते हैं। अल्प शक्ति वाले व्यक्ति मुनिधर्म की पूर्वावस्था श्रावकधर्म का पालन करें, इसके लिये पाँच अणुव्रतों, तीन गुणव्रतों और चार शिक्षाव्रतों तथा जीवन के अन्त में सल्लेखना धारण करने का विधान है। द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव के अनुसार सामाजिक स्थितियों में निरन्तर उतार-चढ़ाव आता रहता है। अतः पूर्ववर्ती और परवर्ती आचार्यों के विचारों में मतभेद भी देखने को मिलता है, किन्तु इसे मनभेद नहीं समझना चाहिये। आचार्य सोमदेवसूरि का यह कथन सर्वत्र स्वागत योग्य है कि सर्व एव हि जैनानां प्रमाणं लौकिको विधिः। यत्र सक्यक्त्वहानिर्न यत्र न व्रतदूषणम्।।6। मूल दो बातों का विशेष ध्यान रखा जाना चाहिये- प्रथम यह कि जीव के धर्म के मूल सम्यग्दर्शन की हानि नहीं होनी चाहिये और द्वितीय यह कि जीव द्वारा स्वीकृत व्रतों में किसी भी प्रकार का दूषण नहीं लगना चाहिये। यहाँ आचार्य समन्तभद्र के विवेचन में जो पूर्वाचार्यो से मतभेद है, उसमें उक्त दोनों मूल बातों से कहीं कोई टकराव नहीं है। पॉच अणुव्रतों को सभी पूर्ववर्ती एवं परवर्ती आचार्यों ने प्रायः समान रूप से स्वीकार किया है। हाँ!
SR No.538058
Book TitleAnekant 2005 Book 58 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2005
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size9 MB
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