SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 31
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अनेकान्त-58/1-2 द्वारा प्रयुक्त आप्त शब्द ही सर्वथा उपयुक्त है और ऐसे आप्त द्वारा प्रणीत आगम तथा तदनुकूल आचरण करने वाले गुरु ही सच्चे होंगे, अन्यथा नहीं। ___ आप्त शब्द को और स्पष्ट करने के लिये उन्होंने आप्त की तीन विशेषताओं का उल्लेख किया है- धर्म के प्रति आस्था रखने वाला कोई भी व्यक्ति अपने साधर्मी भाई का तिरस्कार नहीं करेगा और करता है तो वह अपने धर्म का ही तिरस्कार करता है। क्योंकि धर्म धार्मिकजनों के अभाव मे सम्भव नहीं है- न धर्मो धार्मिकैबिना। आचार्य समन्तभद्र की दृष्टि में कल और जाति आदि का कोई महत्त्व नहीं है। उनकी दृष्टि में धर्म ही सब कुछ है। तिर्यक् योनि में उत्पन्न हुआ कुत्ता भी धर्म के प्रभाव से देव हो सकता है और अधर्म के कारण देव भी कुत्ता हो जाता है- श्वापि देवोऽपि देवः श्वा जायते धर्मकिल्बिषात् । __ आचार्य समन्तभद्र की दृष्टि में मोही मुनि भी हेय है और मोक्षमार्ग में स्थित निर्मोही गृहस्थ भी उपादेय है। क्योंकि मोक्षमार्गस्थ गृहस्थ बढ़ते क्रम में स्थित है, अतः समय आने पर वह मुक्ति को अवश्य प्राप्त करेगा और मोही मुनि घटते क्रम में स्थित है, अतः वह नरक तिर्यञ्चादि गति का पात्र होगा। मोक्षमार्गस्थ निर्मोही गृहस्थ ऊर्ध्वमुखी है और मोही मुनि पतनोन्मुखी। मोक्षमार्गस्थ निर्मोही गृहस्थ का भविष्य उज्ज्वल है और मोही मुनि का भविष्य अन्धकारमय। शास्त्रों में मोहनीय कर्म की उत्कृष्ट आयु सत्तर कोड़ा कोड़ी सागर बतलाई गई है। अतः उससे बचने के लिये जीव को मोह का सर्वथा त्याग कर देना चाहिये। आचार्य समन्तभद्र ने मोक्षमार्ग के बीज रूप सम्यग्दर्शन की जो महिमा गाई है वह अचिन्त्य है। इससे नरक-तिर्यञ्चादि गतियों का अभाव तो हो ही जाता है, मनुष्य गति में भी वह नपुंसक नहीं होगा। स्त्री पर्याय को प्राप्त नहीं होगा। नीच कुल में जन्म नहीं लेगा। उच्च कुल में जन्म लेकर भी विकृत अङ्गों वाला नहीं होगा, अल्पायु नहीं होगा और दरिद्रपने को भी प्राप्त नहीं होगा। अपतुि उसके विपरीत जब यह सम्यग्दर्शन विकसित होगा पत्र-पुष्पादि जब इसमें लगेंगे तो यह स्वर्ग और मोक्षरूप फल को देने वाला होगा।
SR No.538058
Book TitleAnekant 2005 Book 58 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2005
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy