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अनेकान्त 58/3-4
का मंदिर तो क्या, चैत्यालय भी नहीं मिलेगा । दक्षिण के दूसरी तरह के मंदिरों को 'बेट्ट' कहते हैं । ये बहुधा पर्वतों के खुले शिखरों पर होते हैं जिनमें किसी घेरे के अन्दर बाहुबली की खड़गासन मूर्ति होती है । ऐसे बेट्ट दक्षिण में तो बहुत से हैं परन्तु उत्तर में कोई नहीं है ।
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जैनी में कुल 38 मंदिर हैं जिनमें से 8 विन्ध्यगिरि पर इसी परकोटे में और 16 चन्द्रगिरि पर तथा 14 श्रवणबेलगोला ग्राम में हैं । विन्ध्यगिरि के मंदिरों के चारों तरफ जो परकोटा है उसके कपाट नहीं हैं । प्रातः 6 बजे से शाम के 6 बजे तक सबके लिये खुला रहता है । भक्तिभाव प्रदर्शन करने में यहां के अजैन जैनों को भी मात करते हैं । भगवान् उन सबके हैं जो उन्हें श्रद्धा-भक्ति से भजता है ।
इस घेरे में जो 8 मंदिर हैं उनका वर्णन इस प्रकार है :
1. चौबीस तीर्थङ्कर बसदि - यह बहुत ही छोटा मंदिर है इस मंदिर के भीतर एक गर्भगृह, उसके बाद सुखनासी तथा द्वारमंडप है। इस मंदिर में किसी तीर्थकर की कोई खास मूर्ति नहीं है, बल्कि पत्थर की एक पटिया पर नीचे की ओर तीन मूर्तियां खड़ी हैं और उनके ऊपर 21 छोटी-छोटी मूर्तियां गोल प्रभामंडल में अंकित की गई हैं। सन् 1648 में चारुकीर्ति, पंडित धर्मचन्द्र आदि ने इसका निर्माण किया था ।
2. ओदेगल बसदि - इस प्राकार में सबसे बड़ा मंदिर यही है । यह एक ऊँचे चबूतरे पर बना है और सीढ़ियां चढ़कर ऊपर जाते हैं। दीवारों को संभालने के लिये टेकें लगाने के कारण इसका यह नाम पड़ा है । इसके गर्भगृहों के तीनों द्वार क्रमशः पूर्व, पश्चिम तथा दक्षिण दिशा की तरफ हैं जिनमें आदिनाथ, शान्तिनाथ और नेमिनाथ की विशाल मूर्तियां स्थापित हैं । इस कारण इस मंदिर का नाम 'त्रिकूट बसदि' भी पड़ गया है । यह होयसल राज्यकाल का बना हुआ है ।
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3. चेन्नण्ण बसदि - इसमें चन्द्रप्रभु भगवान् की 2.1/2 फुट ऊँची प्रतिमा विराजमान है। मंदिर में एक गर्भगृह है, एक द्वारमंडप है और