SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 238
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैन बद्री (श्रवणबेलगोला) भगवान् बाहुबली की विशाल मूर्ति विन्ध्यगिरि पर्वत पर विराजमान है। पहाड़ पर 600 सीढ़ियों द्वारा चढ़कर पहुंचते हैं। यह पर्वत जैनों का ही नही, अपितु अजैन तथा परदेसियों की दृष्टि में भी बहुत पवित्र है इसीलिये सभी यात्री नंगे पैर ही इस पर चढ़ते हैं। ये सीढ़ियाँ मुंबई के प्रसिद्ध जौहरी दानवीर सेठ माणिकचंद हीराचंद, जे.पी. ने सन् 1884 में बनवाई थीं। थोड़ी दूर जाने पर एक के बाद एक, पत्थर के दो तोरणद्वार मिलते हैं। कुछ ही दूर चढ़ने पर नीचे के मैदान में स्थित श्रवणबेलगोला गाँव तथा उसका पवित्र सरोवर और शस्य श्यामल क्षेत्रभूमि के मनमोहक दृश्य खुले रूप में दिखाई देते हैं। आगे चढ़ने पर एक मन्दिर मिलता है जिसको यहाँ के सेठ पद्मराजैया ने बनवाया था, इसे “ब्रह्मदेव मंदिर" कहते है। ब्रह्मदेव दक्षिण में क्षेत्रपाल माने जाते हैं। ब्रह्मदेव सिंदूर से रंगे हुए पाषाण मात्र हैं। यहाँ के लोग इसे 'जारुगुप्पे अप्प' कहते हैं। इसे हिरीसाल निवासी रंगय्या ने सन् 1677 में बनवाया था। इसकी दूसरी मजिल पर 5 फुट ऊँची काले पत्थर की भगवान् पार्श्वनाथ की पद्मासन प्रतिमा विराजमान है। अब कुछ और चढ़ने पर, भगवान बाहबली के मंदिर के सबसे बाहरी प्रकोष्ट के द्वार पर पहुँच जाते हैं। दक्षिण के जैन मंदिरों के विषय में यह बात ध्यान में रखना जरूरी है कि वे प्रथमतः द्राविड़ स्थापत्य के अनुरूप होते है। दूसरे, उत्तर प्रान्तों के जैन मंदिरों से उनका सबसे बड़ा अन्तर बनावट का है। दक्षिण के मंदिर बनावट में दो तरह के होते हैं:- एक बसदि जिनमें प्रायः खंभोवाली सुखनासी और नवरंग होते हैं और मूर्तियां सबसे भीतर के गर्भगृह में विराजमान रहती हैं। मूर्तियों के दोनों तरफ यक्ष-यक्षी का होना जरूरी बात है। इन मंदिरों में परिक्रमा नहीं होती, उत्तर के मंदिरों में बिना परिक्रमा
SR No.538058
Book TitleAnekant 2005 Book 58 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2005
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy