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________________ अनेकान्त 58/3-4 ___105 भीतर ओसार है। इस मंदिर के आगे एक मानस्तंभ खड़ा है। इसे चेन्नण्ण ने सन् 1673 में बनवाया था। ___4. सिद्धर बसदि-यह मंदिर है तो छोटा-सा ही, पर इसमें 3 फुट ऊँची सिद्ध भगवान की मूर्ति विराजमान है। मूर्ति के दोनों ओर 6-6 फुट ऊँचे मूर्तियों से खचित स्तंभ हैं। दोनों स्तंभों पर अनेक मूर्तियां अंकित हैं। ___5. अखण्डबागिलु (अखंड दरवाजा)-यह एक ही अखण्ड ग्रेनाइट की शिला को काटकर बनाया गया है। इसके ऊपरी भाग में गजब की नक्काशी की गई है। बीच में लक्ष्मी जी एक खिले कमल में विराजमान हैं जिन्हें दो हाथी स्नान करा रहे हैं, इसे भी चामुण्डराय ने ही बनवाया था। इसकी दाई ओर भगवान् बाहुबली जी तथा बाई ओर भरत जी का मंदिर है। इनका निर्माण भरतेश्वर दण्डनायक ने सन् 1130 में किया था। ___6. सिद्धरगुण्डु-अखण्ड दरवाजे की दाई ओर एक बड़ी शिला है जिसे सिद्धरगुण्डु (सिद्धशिला) कहते हैं। इस शिला पर अनेक लेख हैं और ऊपरी भाग में कई जैनाचार्यो की नामसहित मूर्तियाँ अंकित हैं। ___7. गुल्लिकायिज्जी बागिलु-अखण्ड दरवाजे के सिवाय यह दूसरा दरवाजा है। इसका यह नाम पड़ने का कारण यह है कि इसकी दाई ओर की शिला पर बैठी हुई एक स्त्री का चित्र खुदा है जो 1 फुट का है। लोगों ने उसे गुल्किायिज्जी समझ लिया है परन्तु शिलालेख नं. 418 से विदित होता है कि यह चित्र मल्लिसेटि की पुत्री का है, जिसने यहां समाधिमरण किया था। 8. त्यागद ब्रह्मदेव स्तंभ-इसका दूसरा नाम 'चागद कंब' है। इस पर चामुण्डराय ने अपना और मूर्ति बनानेवाले कारीगर का परिचय दिया था परन्तु दुर्भाग्य से हेगडे कन्न नाम के महाशय ने अपनी करतूत अमर करने के लिये उक्त लेखों को घिसवा डाला, जिससे इस मूर्ति के स्थापनकाल, कारीगर का नाम तथा चामुण्डराय के प्रशस्त जीवन संबंधी महत्वपूर्ण घटनाएं लुप्त हो गईं।
SR No.538058
Book TitleAnekant 2005 Book 58 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2005
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size9 MB
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