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अनेकान्त 58/3-4
की श्रीक्षेत्र श्रवणबेलगोला में 57 फीट ऊँची पर्वत शिलाखण्ड में निर्मित अतिशयकारी मूर्ति है। इस मूर्ति को चैत्र शुक्ल पंचमी विक्रम संवत् 1038 में गुरुवार के दिन चामुण्डराय के अनुरोध पर शिल्पियों ने परिपूर्णता प्रदान की थी। 57 फीट की मूर्ति की संरचना का भी एक रहस्य है। संवर के कारण 3 गुप्तियाँ, 5 समितियाँ, 10 धर्म, 12 अनुप्रेक्षायें, 22 परीषहजय
और 5 महाव्रत रूप चारित्र हैं। कदाचित् संवर के 57 कारणों को ध्यान में रखकर ही चामुण्डराय ने इसे 57 फीट की बनवाने का निर्देश दिया हो।
गोम्मटेश बाहुबली की इस मूर्ति का जब प्रथम अभिषेक राजा-महाराजाओं, मन्त्री-सेनापति आदि ने किया तो कहा जाता है कि उनके अभिषेक की पयोधारा कटिप्रदेश तक ही आ पाती थी। सब आश्चर्यचकित थे। पता चला कि एक गुल्लिका अज्जी गल्लिका में दुग्ध लेकर भगवान् का अभिषेक करना चाहती है। किसी तरह जब उसे अनमति मिल गई और उसने अभिषेक किया तो लोगों के आश्चर्य का ठिकाना न रहा। भावविशुद्धि के कारण उसके गुल्लिकाभर दुग्ध से पूरी प्रतिमा का अभिषेक हो गया तथा बहने वाली धारा से नीचे कल्याणी सरोवर भी लबालब भर गया। इससे प्रभावित होकर चामुण्डराय ने गुल्लिका अज्जी की मूर्ति भी मुख्य द्वार पर स्थापित करा दी। गुल्लिका अज्जी अमर हो गई।
6 फरवरी, से 19 फरवरी 2006 तक श्रीक्षेत्र श्रवणबेलगोला में विराजमान विश्वविख्यात भगवान् गोम्मटेश बाहुबली की इस अतिशयकारी पावन प्रतिमा का बारह वर्ष के पश्चात् महामस्तकाभिषेक सम्पन्न होने जा रहा है। इस आयोजन की तैयारियाँ लगभग पूरी हो चुकी हैं। इस अवसर पर अनेकान्त का यह संयुक्तांक विशेषांक के रूप में समर्पित करते हए हमें अलौकिक आनन्द एव असीमित आत्मतोष हो रहा है। गुल्लिका अज्जी की तरह यदि हमारे भावों में विशुद्धि हो, उसके दुग्ध के समान यदि अभिषेक में प्रयोज्यमान द्रव्यों की शुद्धि हो तो निश्चित ही हम भी महामस्तकाभिषेक के फल से सफल हो सकते हैं।