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अनेकान्त-58/1-2
में दिगम्बर मनि का सवारी में बैठने का विधान नहीं है; तब विमान में बैठकर आचार्य कुन्दकुन्द का विदेह जाने का कथन करना कहीं उनको लांछन लगाना और दिगम्बर वेश को बदनाम करने का सुनियोजित षड्यन्त्र तो नहीं? उक्त कथन दिगम्बरत्व की हानि करने का प्रयत्न मात्र
लगता है। 4. मुनि का पीछी बिना गमनागमन कहाँ तक उचित है? पीछी के अभाव में
गिद्ध पंख कहाँ और कितनी दूर मिला; जबकि गिद्ध पंख छोड़ता ही नहीं। गिद्ध पंख और मयूर पंख में महत् अन्तर होता है। मयूर पंख इतना कोमल होता है कि आँख में फिराने पर कोई नुकसान नहीं होता। वह जीव रक्षा के लिए सर्वथा अनुकूल है। जबकि गिद्ध पंख अत्यन्त कर्कश और खुरदरा होता है उससे चींटी आदि का मरण संभव तो है बचाव नहीं। ऐसे
में गिद्ध पीछी का ग्रहण किस आगम सम्मत है? 5. किंवदन्ती में कथन है कि विदेह से लौटते समय आचार्य कुन्दकुन्द एक
शास्त्र भी लाए। शास्त्र में राजनीति, मंत्र आदि का विशद वर्णन था। आते समय वह शास्त्र लवण समुद्र में गिर गया।
विचारणीय है कि आचार्य कुन्दकुन्द जैसे आध्यात्मिक आचार्य शंका समाधान के पश्चात् विदेह से शास्त्र भी लाए और वह भी राजनीति एवं मंत्रों के वर्णन वाला। जी देव विमान में लेकर आए थे उन्होंने शास्त्र की रक्षा क्यों नहीं की। जबकि वे ऐसा कर सकते थे।
ऐसी अन्य भी बहुत सी किंवदन्तियां होंगी जो हमें देखने को नहीं मिलीं। समक्ष आने पर सोचेंगे और लिखेंगे। आचार्य कुन्दकुन्द को कोई ऋद्धि आदि प्राप्त थी इसका भी किसी आगम में प्रमाण नहीं मिलता। हम टीकाकारों के आगम सम्मत कथनों को पूर्ण सत्य मानते हैं। यही बात शिलालेखों के संबंध में भी है। वे भी आगम सम्मत होने चाहिए।
हमें तो आश्चर्य तब भी होता है जब आचार्य कुन्दकुन्द ने विहेद गमन के वृत्तान्त को कहीं स्वीकार नहीं किया जबकि उनकी विदेह यात्रा उनके जीवन