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________________ अनेकान्त-58/1-2 125 पर गिनने लायक बचे हैं। आपने मान-अपमान आदि की परवाह न करते हुए समाज मार्ग च्युत न हो जाए इसके लिए अंतिम श्वास तक प्रयत्न किया। __ मैंने अजित प्रसाद जी को साक्षात देखा तो नहीं पर पं. पद्मचन्द्र जी शास्त्री एवं श्री महावीर प्रसाद जी सर्राफ 'शाकाहार प्रचारक' को लिखे गए उनके पत्र पढ़ने का सौभाग्य मुझे गत वर्षों से मिलता रहा है। वीर सेवा मंदिर में कार्यरत होने से श्री अजितप्रसाद जी के पत्र पंडित पद्मचन्द्र जी को पढ़कर सुनाता रहा हूँ तथा श्री महावीर प्रसाद जी भी आपका पत्र आने पर दूरभाष या पत्र के माध्यम से सूचित कर देते थे। आपने पंडित पदमचन्द्र जी के अनेकान्त 55/3 में छपे 'भरतक्षेत्र के सीमन्धर आचार्य कुन्दकुन्द' लेख की समीक्षा करते हुए पत्र में लिखा था कि___ “आपने सीमन्धर शब्द की व्याख्या एवं श्री कुन्दकुन्द के विदेह गमन की अनुश्रुति का खंडन बड़े सुन्दर ढंग से किया है। पर मेरी मान्यता है कि कुन्दकुन्द पद्मनन्दि से भिन्न आचार्य थे।" आपके पत्रों में विशेषता यह रहती थी कि आप अपने एवं जिसको पत्र लिखा है उसके बारे में बहुत कम लिखकर दिगम्बर आगम के साथ हो रही अवमानना एवं समाज के जैनत्व से गिरते स्तर पर चिंता एवं उसके समाधान को विस्तार से लिखते थे। इन सब अनुभवों एवं शोधादर्श में छपी उनकी टिप्पणियों के पढ़ने पर मैं दृढ़ता से लिख सकता हूँ कि वे तर्क पूर्ण मनीषा के स्वामी थे, वे उच्चारण से उच्च आचरण को अधिक महत्त्व देते थे, धर्म के नाम पर कोरी आडम्बरता उन्हें पसन्द नहीं थी, सत्य के उद्भावन से उन्होंने कभी समझौता नहीं किया। ___ श्री अजित प्रसाद जी के लेखों के कुछ अंशो का उद्धरण मैं यहाँ अनेकान्त के पाठकों को इस आशा से दे रहा हूँ कि जिन पाठकों ने श्री अजित प्रसादजी को देखा, सुना, पढ़ा नहीं है वह भी उनके बहुआयामी व्यक्तित्व से परिचित होकर उनके विचारों का लाभ अवश्य उठाएंगे। आप एक सफल पत्रकार रहे हैं- 20 अप्रैल 03 को नई दिल्ली में अहिंसा इंटरनेशनल द्वारा प्रेमचन्द जैन पत्रकारिता पुरस्कार प्राप्त करते हुए उन्होंने
SR No.538058
Book TitleAnekant 2005 Book 58 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2005
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size9 MB
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