________________
आदर्श सम्पादक : श्री अजित प्रसाद
- संजीव 'ललित' पलकों से तूफान उठाया जा सकता है।
मौन रहके भी शोर मचाया जा सकता है।। पत्रकारिता के माध्यम से समाज जागृति की मौन क्रांति का शंखनाद करने वाले 'शोधादर्श' के सम्पादक श्री अजित प्रसाद जी अब हमारे बीच नहीं रहे यह विचार केवल उन लोगों का हो सकता है जो उन्हें औदारिक शरीर मात्र से जानते थे। मेरे अनुसार वे अब भी हैं और उनके द्वारा धर्म प्रभावना, समाज जागृति के लिए दिए गए विचारों से वह सदैव यशस्वी शरीर से जीवित रहेंगे।
1 जनवरी 1918 को मेरठ में बाबू पारसदास जी के घर जन्मे श्री अजित प्रसाद जी ने संस्कृत एवं हिन्दी साहित्य की अभूतपूर्व सेवा की है। आप 1938 में उ. प्र. की लोक सेवा आयोग द्वारा प्रथम बैच में सचिवालय सेवा परीक्षा में उत्तीर्ण हुए।
आपके अग्रज भ्राता इतिहास मनीषी डॉ. ज्योति प्रसाद जैन की वात्सल्य पूर्ण शिक्षा ने आपके पत्रकारिता के गुणों को विकसित करने में उर्वरक का काम किया। जिससे आप एक सुलझे हुए पत्रकार बन गये। डॉ. ज्योतिप्रसाद जी के पश्चात् 'शोधादर्श' पत्रिका को आपने अपनी लगन, कठिन परिश्रम एवं सेवाभाव से आज तक नामानुरूप शोध के लिए आदर्श बनाए रखा। सम्पूर्ण साहित्यक क्षेत्र व जैन समाज आपकी इस सेवा से चिरकाल गौरवान्वित एवं लाभान्वित हुआ है। पत्रिका के सम्पादन दायित्व को बखूबी निभाते हुए अनुसंधान के नए-नए आयाम खोजना आपकी विशेषता रही।
अपने विचारों की तुर्क पूर्ण एवं आगम के परिप्रेक्ष्य में विवेचना आप जिस निर्भयता से करते रहे वैसे निर्भीक, सजग सम्पादक अब समाज में उंगलियों