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अनेकान्त-58/1-2
काल में इसके नायक वैशाली के राजा चेटक थे। वज्जिसंघ के ही अन्तर्गत कुंडलपुर के ज्ञातृवंशी लिच्छवि-नरेश सिद्धार्थ के ही पुत्र भगवान महावीर थे। वैशाली के राजा चेटक उनके नाना थे। चेटक की एक कन्या मगधराज श्रेणिक को, दूसरी वत्सराज उदयन को और तीसरी कोशल के राज्य वंश में वियाही थी। इन सर्व राज्यों, गणों और वहां की जनता पर भगवान महावीर का सर्वाधिक प्रभाव पड़ा था, वे सब उनके परमभक्त अनुयायी थे। यह वज्जिसंघ गणतन्त्र का आदर्श था।
नवोदित मगध साम्राज्य की साम्राज्याभिलिप्सा के कारण वज्जिसंघ और मगधराज्य में द्वन्द चलता रहा, अंत में अजातशत्रु ने वैशाली विजय कर वज्जिसंघ को छिन्न-भिन्न कर दिया, किन्तु भले ही गौण रूप में, लिच्छवियों का अस्तित्व सन् ई. 6-7वीं शताब्दी तक बना रहा। __ मल्ल भी वज्जिसंघ की ही एक पड़ौसी व्रात्य जाति का गणतन्त्र था। पावा इनका प्रधान नगर था। वहीं भगवान महावीर का निर्वाण हुआ।
काशी के संबंध में ऊपर कहा ही जा चुका है। भगवान महावीर के जन्म के पूर्व ही वह कोशलराज्य में सम्मिलित हो गया था। अजातशत्रु ने कौशल से उसे छीनकर मगध में मिला लिया था।
कौशल में प्राचीन सूर्यवंशी राजों का ही राज्य चला आता था, महावीर काल में वहां का राजा प्रसिद्ध प्रसेनजित था, जो भगवान महावीर का भक्त था। उसके उपरान्त कोशल भी मगध-राज्य में सम्मिलित हो गया।
दक्षिण में ईस्वी सन् के प्रारंभकाल से ही अनेक राज्य-नाग, पल्लव, गङ्ग, चालुक्य, होयसल, राष्ट्रकूट आदि स्थापित होने लगे थे। उन सबमें ही प्रारंभ से जैनधर्म की ही प्रवृत्ति रही। किन्तु सन् ई. 5वीं शताब्दी के उपरान्त शैव वैष्णव धर्मों के बढ़ते हुए प्रचार के आगे तत्संबंधी राज्यवंशों के आगे पीछे धर्मपरिवर्तन के कारण धीरे धीरे वहाँ जैनधर्म का ह्रास होता चला गया। तथापि मध्य युग के मध्य तक दक्षिण प्रान्त में जैन धर्म की ही सर्वाधिक प्रधानता रही।