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________________ अनेकान्त-58/1-2 113 अन्य तामिल राज्य तथा लंका आदि द्वीप इसके आधीन थे और ईस्वी सन के प्रारंभ तक वैसे ही चलते रहे। पांड्य राज्य की राजधानी मदुरा दक्षिण में जैनों का सबसे बड़ा केन्द्र था तामिल के प्रसिद्ध संगम साहित्य का अधिकांश जैन पांड्य राजाओं की छत्रछाया में प्रकॉड विद्वानों द्वारा ही निर्मित हुआ था। जैन मौर्यसम्राट तथा कलिङ्ग नरेश जैन खारवेल से पांड्य नरेशों का मैत्री संबंध था। लंका आदि द्वीपों में भी ई. पूर्व की छठी शताबदी के स्तूप आदि जैन अवशेष मिले हैं। अशोक के समय से लंका में अवश्य ही बौद्ध धर्म का प्रचार होना प्रारंभ हो गया, किन्तु तामिल राज्यों में सन् ई. 6ठी 7वीं शताब्दी तक जैनधर्म की प्रवृत्ति रही। उसके उपरान्त शैव तथा वैष्णव धर्मो के नवप्रचार के कारण तथा तत्संबंधित राज्यवंशों के धर्म परिवर्तन के कारण जैनधर्म की प्रगति को आघात पहुँचा और वहाँ उसका ह्रास प्रारंभ हो गया। लाढ़ मध्योत्तर दक्षिण भारत का राज्य था। यहाँ महावीरकाल में राष्ट्रिक, भोजक, आन्ध्र आदि अनार्य राज्यों की सत्ता थी। उसके पूर्व वहाँ यक्ष, विद्याध पर आदि जैन अनार्य राज्य थे, ई. पू. प्रथम शताबदी में ही आन्ध्र राज्य सर्वोपरि हो गया और उसने अन्य पड़ौसी सत्ताओं को अपने में गर्भित कर साम्राज्य का रूप ले लिया। ये सर्व राज्य और इनकी प्रजा अधिकतर अन्त तक व्रात्य संस्कृति की पालक और जैनधर्मानुयायी ही रही। ___ आबाह पश्चिमोत्तर प्रान्त था। बौद्ध अनुश्रुति के गांधार, कम्बोज और जैन अनुश्रुति के तक्षशिला तथा उरगयन नामक नाग गणराज्यों का यह एक संघ था। ये नाग लोग वैदिक आर्य-संस्कृति के विरोधी और व्रात्य-संस्कृति के पोषक थे। सम्भुत्तर महाजनपद मध्य पञ्जाब का प्रसिद्ध व्रात्य क्षत्रियों का राज्य था। सैन्धवान के साम्भव लोग भगवान संभवनाथ (3रें तीर्थकर, जिनका चिन्हविशेष 'अश्व' था) के अनुयायी थे। इस राज्य की सत्ता सिकन्दर महान के आक्रमण के समय भी थी। सिकन्दर ने भडकर युद्ध के पश्चात् इस राज्य पर एक अस्थायी विजय प्राप्त की थी। पूर्व का वज्जिसंघ तो व्रात्य क्षत्रियों का एक प्रसिद्ध केन्द्र था। महावीर
SR No.538058
Book TitleAnekant 2005 Book 58 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2005
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size9 MB
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