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क्या आगम का आधार किंवदन्ती हो सकती है?
___ -पद्मचन्द्र शास्त्री क्या तमाशा है मुझे कुछ लोग समझाने चले।
एक दीवाने के पीछे कितने दीवाने चले।। पिछले अनेकान्त के अंको में हम 'विचारणीय' प्रसंग में ‘आचार्य कुन्द-कुन्द स्वयं ही सीमंधर हैं' की चर्चा कर चुके हैं। हमें इस सम्बन्ध में किसी के नए कोई विचार नहीं मिले। हम यह स्पष्ट कर दें कि हमने सीमंधरसामिकुन्दकुन्द के विषय में जो लिखा है वह आगम विरोधी न होकर विदेहगमन की सहमति रखने वालों के लिए मार्ग दर्शन है। हमने अपने विचार प्राकृत कोषों और आगम की गाथा के मूलशब्दों को बदले बिना जैसे के तैसे दिए हैं। किसी व्याकरण से कोई प्रयोग जानबूझकर बदलना उचित नहीं समझा; वरना कुछ लोग कहते आगम को ही बदल दिया। अतः हमने प्राकृत कोष और गाथा के अनुसार वही शब्द दिया जो वहाँ है। आगम सम्मत विचारों को कोई बदल नहीं सकता।
यह तो सत्य है कि हम दिगम्बर मूल आचार्य पूज्य सीमंधरस्वामी कुन्दकुन्द के श्रद्धालु हैं और वे हमारे. आराध्य हैं। दिगम्बरत्व और आगम में कोई विरोधी बात कैसे स्वीकार की जा सकती है। कोई दिगम्बर जैन आगम के विपरीत सोच भी कैसे सकता हैं? ___ जब हम आचार्य कुन्दकुन्द के विदेह जाने की बात सुनते हैं तो मन को ठेस लगना स्वभाविक है। किंवदन्तियों (जनश्रुतियों) चमत्कारों ने आगम को किनारे रखकर दिगम्बर तीर्थकर और मुनियों को भी नहीं वख्शा। जैसे एक किंवदन्ती हमारे समक्ष है जिसमें कहा गया है1. तीर्थकर सीमंधर स्वामी ने दिव्यध्वनि में आचार्य कुन्दकुन्द को आशीर्वाद
दिया और प्रश्न के उत्तर में कुन्दकुन्द का नाम बतलाया।