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अनेकान्त-58/1-2
उनका यह भी कहना है कि उक्तगाथा का गलत अर्थ करना तथा और भी कुछ अन्य बातें हैं जिनसे दिगम्वरत्व को नष्ट करने की सुनियोजित साजिश मालूम होती है।
इस नवीनतम दृष्टिकोण पर अन्य अधिकारी विद्वान् चितन-मनन व विश्लेषण करके हमारे जैसे अल्पश्रुतों का मार्ग दर्शन करेंगे ऐसी आशा है।
अवकाश प्राप्त न्यायमूर्ति एम. एल. जैन, जयपुर
पाठकीय अभिमत-2 श्री पं. पद्मचन्द्र शास्त्री जी के दो लेख आचार्य कुन्दकुन्द के नाम तथा 'विदेहगमन के विषय में अनेकान्त में पढ़े। उन्होंने साक्ष्यों के आधार पर सिद्ध किया है कि आचार्य कुन्दकुन्द ने दिगम्बर अम्नाय की पवित्रता, मौलिकता तथा पहचान की रक्षा के लिए आचागत मर्यादाओं का विधान किया। इसी कारण वे सीमंधर कहलाये। लेखक का यह विश्लेषण तर्कयुक्त तथा यथार्थ प्रतीत होता है। समाज बड़ा विचित्र है। वह चमत्कारों से कल्पित कथाओं से, नारों से, आतिशबाजी से, वेश तथा अजीबोगरीब रहन सहन से, पागलपन से बहत प्रभावित होता है। यों देखा जाए तो प्रत्येक मनुष्य और प्राणी चमत्कारों से भरा है। अरबों व्यक्तियों के चेहरे अलग, आवाज अलग, चाल ढाल अलग क्या यह चमत्कार से कम है? हम इतने कुशल हैं कि प्रत्येक सन्त-महात्मा की महत्ता बढ़ाने के लिए उनके साथ चमत्कार की कथा जोड़ देते हैं। समय के साथ शब्दों के अर्थ और भाव बदल जाते हैं। अतिशयोक्तियाँ और चमत्कार हमारे अज्ञान के द्योतक ही हैं। छोटे बच्चे के लिए चूल्हे पर रोटी का फूलना भी चमत्कार ही है। इसलिए मैं लेखक को धन्यवाद देता हूं कि उन्होंने चमत्कार के नाम पर कुन्दकुन्द स्वामी की मर्यादा को, उनके आदर्श को बचाये रखा।
-जमनालाल जैन, सारनाथ