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________________ अनेकान्त-58/1-2 105 तथा मथुरा के पुरातत्व में अनेक नागकुमार व नागकुमारियाँ योगीराज पार्श्व जिनकी भक्ति करती दीख रहती हैं। भगवान पार्श्व के धर्म प्रचार से रही सही याज्ञिक हिंसा भी समाप्त हो गई। याज्ञिक, देवतावादी वैदिकधर्म तथा अहिंसाप्रधान आत्मवादी जैनधर्म के बीच सामञ्जस्य और समन्वय बैठाने के प्रयत्न होने लगे। अनेक दर्शन तथा मत-मतान्तर पैदा होने लगे। ई. पूर्व 777 में बिहार प्रान्त के सम्मेदशिखर से भगवान पार्श्व ने निर्वाण लाभ लिया। वह इस जैन युग के द्वितीय युगप्रवर्तक थे (प्रथम युगप्रवर्तक महाभारत कालीन 22वें तीर्थङ्गर अरिष्टनेमि थे) और जैनधर्म के पुनरुद्धारक थे। उनके प्रचार से जैन धर्म का प्रसार अधिकाधिक विस्तृत हो गया था। किन्तु इस पुनरुद्धार कार्य में वह जैन संघ की पूर्ण सुदृढ़ व्यवस्था न कर पाये थे। उनके पश्चात अनेक नवोदित मत-मतान्तरों के कारण जैन दार्शनिक सिद्धान्त तथा आचार-नियम भी अच्छे व्यवस्थित एवं सुनिश्चित रूप में न रह गये थे। स्वयं उनकी शिष्य-परम्परा में बुद्धकीर्ति, मौद्गलायन, मक्खलिगोशाल, केशीपुत्र आदि विद्वानों मे सैद्धान्तिक मतभेद होने लगा था, उन विद्वानों ने अपने-अपने मन्तव्यों का प्रचार भी स्वतन्त्र धर्मो के रूप में करना प्रारम्भ कर दिया था। ऐसे समय में एक अन्य युगप्रवर्तक महापुरुष की आवश्यकता थी। अस्तु, ई. पूर्व 600 में अन्तिम तीर्थकर भगवान महावीर का जन्म हुआ। 30 वर्ष की आयु तक गृहस्थ में रहकर 12 वर्ष पर्यन्त उन्होंने दुद्धर तपश्चरण और योगसाधन किया। तदुपरान्त केवलज्ञान (सर्वज्ञत्व) को प्राप्त कर नातपुत्त निर्ग्रन्थ महावीर जिनेन्द्र ने 30 वर्ष पर्यन्त सर्वत्र देश-देशान्तरों में विहार कर धर्मोपदेश दिया। जिस प्रान्त में उनका सर्वाधिक विहार हुआ वह विहार के ही नाम से प्रसिद्ध हो गया। ई. पूर्व. 527 में भगवान ने 'पावा' से निर्वाण प्राप्त किया। ___ उन्होंने मुनि, आर्यिका, श्रावक, श्राविकारूप चतुर्दिक संघ की स्थापना की, आचार नियमों से संघ की सुदृढ़ व्यवस्था कर दी। अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह पांच प्रकार व्रतों को यथाशक्य मन, वचन काय से पालन करते हुए क्रोधमान मायालोभादि कषायों का दमन करते हुए सम्यग्दर्शन,
SR No.538058
Book TitleAnekant 2005 Book 58 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2005
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size9 MB
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