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________________ 102 अनेकान्त-58/1-2 अब देखना यह है कि प्राचीन भारत के उस अढ़ाई सहस्त्र वर्ष के लम्बे काल में किस संस्कृति तथा धर्म का इस देश में सर्वाधिक व्यापक प्रभाव एवं प्रसार रहा और उपलब्ध ऐतिहासिक प्रमाण कहां तक उस बात की पुष्टि करते ___ भारतवर्ष विन्ध्य पर्वतमेखला द्वारा उत्तरी भारत तथा दक्षिणी भारत ऐसे दो विभागों में विभक्त है। इन दोनों प्रदेशों का इतिहास प्राचीनकाल के अधिकांश एक दूसरे से प्रायः पृथक तथा स्वतन्त्र ही चला है। अस्तुः दोनों प्रान्तों का पृथक्-पृथक् विवेचन ही अधिक उपयुक्त होगा। __यह तो प्रायः निश्चित है कि भारतीय इतिहास के प्राचीन युग में इस देश में हिन्दु, बौद्ध तथा जैन यह तीन ही धर्म विशेष रूप से प्रचलित थे। और इसमें भी कोई सन्देह नहीं कि बौद्ध धर्म की उत्पत्ति ईस्व पूर्व छठी शताब्दी में महात्मा बुद्ध द्वारा हुई थी। उससे पूर्व स्वयं बौद्ध अनुश्रुति एवं साहित्य के अनुसार इस धर्म का कोई अस्तित्व न था। कोई स्वतन्त्र प्रमाण भी इस मत के विरोध में उपलब्ध नहीं है। हिन्दु धर्म, जिसका पूर्वरूप वैदिक था तथा उत्तर रूप पौराणिक हिन्दु धर्म हुआ, सन् ईस्वी पूर्व लगभग 3 से 4 हजार वर्ष के बीच भारत में प्रविष्ट आर्य जाति के धर्म और संस्कृति से सम्बन्धित था। बौद्ध धर्म की उत्पत्ति के बहुत पहिले से वह इस देश में विद्यमान था। अब रहा जैनधर्म। गत पचास वर्ष की खोजों तथा अध्ययन के आधार पर आज प्रायः सर्व ही पाश्चात्य एवं पौर्वात्य प्राच्यविद्याविशारद इस विषय में एकमत हैं कि जैनधर्म बौद्धधर्म से सर्वथा भिन्न, उससे अति प्राचीन, एक स्वतन्त्र धर्म है। वैदिक धर्म के साथ-साथ वह इस देश में नियमित इतिहासकाल के प्रारंभ के बहुत समय पूर्व से प्रचलित रहा है और संभवतः आर्यो के भारत प्रवेश से पूर्व भी इस देश में प्रचलित था। वह शुद्ध भारतीय धर्मो में जो आज तक प्रचलित हैं, सबसे प्राचीन है। इस प्रकार, महाभारत युद्ध के उपरान्त अर्थात् भारतीय इतिहास के
SR No.538058
Book TitleAnekant 2005 Book 58 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2005
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size9 MB
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