________________
पचास वर्ष पूर्व भारतीय इतिहास का जैनयुग
-डॉ. ज्योतिप्रसाद जैन इतिहास जातीय-जीवन के अतीत का सर्वाङ्गीण प्रतिबिम्ब होता है। अतीत में से ही वर्तमान का जन्म होता है। दोनों का परस्पर इतना घनिष्ट सम्बन्ध है कि बिना अतीत की यथार्थ जानकारी के वर्तमान का वास्तविक स्वरूप समझना कठिन ही नहीं, प्रायः असम्भव है। अतः जातीय उन्नति के हित समाज शास्त्र के प्रधान अङ्ग जातीय इतिहास का ज्ञान परमावश्यक है। __ ऐतिहासिक अन्वेषण एवं अध्ययन की सुगमता के लिये इतिहासकाल विभिन्न भागों में विभक्त कर लिया जाता है। इसी कारण भारतवर्ष अथवा भारतीय जाति का इतिहास भी विविध युगों में विभक्त हुआ मिलता है।
सर्वप्रथम, लगभग तीन हजार वर्ष का वह 'शुद्ध ऐतिहासिक काल' है जिसके अन्तर्गत राज्य सत्ताओं, सामाजिक संस्थाओं, धर्म, सभ्यता, साहित्य एवं कला आदि का नियमित, काल क्रमानुसार, बहुत कुछ निश्चित इतिहास (Regular History) उपलब्ध है।
शुद्ध ऐतिहासिक युग के प्रारम्भ काल से पूर्व का कई सहन वर्ष का अनिश्चित समय ऐसा है जिसके अन्तर्गत होने वाले अनेक प्रसिद्ध पुरुषों, महत्वपूर्ण घटनाओं, धर्म, सभ्यता आदि के विषय में यद्यपि जातीय अनुश्रुति, पुरातत्व, जाति विज्ञान, मानुषमिति कपालमिति, भू विज्ञान इत्यादि के द्वारा अनेक ज्ञातव्य बातों का ज्ञान तो प्राप्त हो जाता है, किन्तु कोई नियमितता और काल क्रम की निश्चितता नहीं है। उस काल-सम्बन्धी इतिहास धुंधला, सन्दिग्ध तथा अनिश्चित कोटि का होने से, 'अशुद्ध अथवा अनियमित इतिहास' (Proto History) कहलाता है।