________________
अनेकान्त-58/1-2
97
शेषयोस्तु चतुर्थे स्यात्काले तज्जाति सततिः।
एवं वर्णविभाग स्यान्मनुष्येषु जिनागमे ।। 495 ।। उत्तर पुराण पर्व 74 6. आदिपुराण पर्व 16 श्लोक 143, 144, पृ 362, 363 7. देसकुल जाइसुद्धा विसुद्ध मणवयणकाय सजुत्ता।
तुम्ह पाय पयोरूहमिह मंगलमत्थु मे णिच्च ।। 8. धर्मभूमौ स्वभावेन मनुष्यो नियतस्मर ।
यज्जात्यैव पराजातिधुलिगस्त्रियस्त्यजेत्।। 406 || उपासकाध्ययन 9. जीवट्ठाणानुयोगद्वार पृ. 316 10. तत्त्वार्थ श्लोकवार्तिक
-रीडर-संस्कृत विभाग दिगम्बर जैन कॉलेज
बड़ौत (बागपत)
- - - - - - - - - - - - - - - - परमागम का बीज जो, जैनागम का प्राण। ! 'अनेकान्त' सत्सूर्य सो, करो जगत्-कल्याण।। 'अनेकान्त'-रवि-किरण से, तम अज्ञान विनाश। मिट मिथ्यात्व-कुरीति सब, हो सद्धर्म प्रकाश।। । कुनय-कदाग्रह न रहे, रहे न मिथ्याचार। तेज देख भागें सभी, दंभी-शठ-वटमार।। सूख जायँ दुर्गुण सकल, पोषण मिले अपार। सद्भावों का लोक में, हो विकसित संसार ।।
- पं. जुगल किशोर 'मुख्तार'