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________________ अनेकान्त-57/1-2 हस्तलिखित प्रतियों का समीचीन एवं व्यवस्थित उपयोग करने के कारण यह संस्करण अधिक प्रचलित है। इसका प्रकाशन, मुद्रण आदि में किया गया परिश्रम भी श्लाघ्य है। ज्ञानपीठ संस्करण में पं. पन्नालाल जी की सम्पादन-कला का वैशिष्ट्य श्री पं. पन्नालाल जी साहित्याचार्य सागर का जैन साहित्य के विकास में महनीय अवदान है। उन्होंने संस्कृत भाषा में अनेक मौलिक ग्रन्थों की रचना की तथा प्राचीन जैन साहित्य के पुराणों, काव्यो आदि का सम्पादन एवं अनुवाद किया। यद्यपि उनके समक्ष श्री पं. लालाराम जी शास्त्री कृत हिन्दी अनुवाद प्रायः उपलब्ध थे, अतः अनुवाद में उन्हें उनकी पर्याप्त सहायता मिली। परन्तु अधुनातन सम्पादन कला की तकनीक का उपयोग जैन पुराणों एवं काव्यों आदि के सम्पादन में उन्होंने अत्यन्त सावधानीपूर्वक किया है तथा इसमें उन्हें सफलता भी प्राप्त हुई है। पद्मपुराण के परिप्रेक्ष्य में उनकी सम्पादन कला को बिन्दुवार इस प्रकार देखा जा सकता है। (क) हस्तलिखित प्रतियों का उपयोग - श्री पं. पन्नालाल जी ने पं. दरबारीलाल न्यायतीर्थ द्वारा सम्पादित/संशोधित तथा भा. दि. जैन ग्रन्थमाला मुम्बई द्वारा प्रकाशित पद्मचरित नाम से प्रकाशित पद्मपुराण के संस्करण के संशोधन के लिए निम्नलिखित हस्तप्रतियों का प्रयोग किया है(1) श्री पं. परमानन्द शास्त्री द्वारा प्राप्त दिगम्बर जैन सरस्वती भवन धर्मपुरा की पौष कृष्णा सप्तमी बुधवार वि. सं. 1775 (1718 ई.) की प्रति, जिसे भुसावर निवासी श्री मानसिंह पुत्र श्री सुखानन्द ने लिखी थी। इसका सांकेतिक नाम 'क' रखा है। श्री पं. परमानन्द शास्त्री द्वारा प्राप्त दिगम्बर जैन सरस्वती भवन पंचायती मन्दिर मस्जिद खजूर की प्रति, जिसका सांकेतिक नाम 'ख' है तथा जिसके प्रारंभिक दो श्लोकों पर संस्कृत टीका भी है। इस पर लेखन समयादि अंकित नही है। (3) श्री पं. चैनसुखदास जी के सौजन्य से प्राप्त श्री दि. जैन अतिशय क्षेत्र
SR No.538057
Book TitleAnekant 2004 Book 57 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2004
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size9 MB
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