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________________ 30 अनेकान्त-57/1-2 होता है । बहिरंग ( निमित्त ) की काललब्धि रूप देशना है । भावना लब्धि-आस्तिक्य। सात तत्त्वों की भावनारूप देशनालब्धि का दर्शक है। 7 ( 4 ) प्रायोग्य लब्धि :- तत्त्व विचार, तत्त्व निर्णय एवं ज्ञायक स्वभाव पर दृष्टि केन्द्रित होने के विशुद्ध परिणामों के निमित्त से आयु बिना शेष सात कर्मो की स्थिति घटकर अन्तः कोड़ा - कोड़ी हो जाती है। नवीन कर्मबंध की स्थिति उससे संख्यात हजार सागर की कम होती है । अप्रशस्त कर्मो का अनुभाग घटता है । प्रशस्त कर्मों का अनुभाग बढ़ता है। 46 कर्म प्रकृतियों का बंध रुककर प्रकृति बंध पसरण होता है । जिज्ञासा पूर्वक तत्त्व-ग्रहण धारण में बुद्धिपूर्वक उपयोग लगता है। परिणाम बुद्धिपूर्वक शुभतर विशुद्ध होते हैं । द्रव्यानुयोग सापेक्ष करणानुयोग की प्रधानता से आत्मपुरुषार्थ जाग्रत होकर उपदेश से वैराग्य भाव जागृत होता है । कर्म-स्थिति की अपेक्षा काललब्धि - कर्म हानि । भावनालब्धि-संवेग अर्थात् कर्मभीरुता । कर्म अभाव हेतु पुरुषार्थ से प्रायोग्यलब्धि का द्योतक है। भव्य जीव के अर्द्धपुद्गल परावर्तन काल शेष रहने पर प्रथमोपशम सम्यक्त्व होता है । (5) करणलब्धि :- करणलब्धि होने पर सम्यक्त्व नियम से होता है । करणः परिणामाः अर्थात् करण शब्द का अर्थ परिणाम है । जीव के शुभ-अशुभ और शुद्ध परिणामों को करण कहते हैं। जीव अनादिकाल से आत्म-स्वरूप विस्मृत कर कर्म और कर्मफल चेतना' रूप अज्ञान चेतना से आकुलित है। अज्ञान चेतना से ज्ञान चेतना का रूपांतरण शुभाशुभ भावों के परे आत्मा के शुद्ध ज्ञायक भाव के आश्रय से ही होता है । देशनालब्धि पूर्वक तत्त्वनिर्णय और बुद्धिपूर्वक तत्त्वविचार में उपयोग को तद्रूप होकर लगाने से समय-समय पर परिणाम निर्मल होते जाते हैं। उससे वीतरागता के प्रति बहुमान एवं आत्मा 'ऐसा ही है' ऐसी प्रतीति पूर्वक आत्म जागरण का भाव आता है उससे परिणाम विशुद्ध होते हैं, श्रद्धा और ज्ञान निर्मल होता है तथा करणलब्धि की प्रक्रिया प्रारम्भ होती है । करणलब्धि उसी जीव को होती है जिसे चार लब्धियाँ हुई हों और अंतर्मुहूर्त पश्चात सम्यक्त्व होना हो । करण जिस प्रकार सम्यक्त्व के नियामक है, उसी प्रकार शुद्धोपयोग एवं सम्यक्चारित्र की प्राप्ति
SR No.538057
Book TitleAnekant 2004 Book 57 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2004
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size9 MB
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