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________________ 118 अनेकान्त-57/3-4 उपयुक्त करें, परन्तु, भाषाविज्ञानीजन उन समस्त पर्यायवाची शब्दों की भिन्न विशेषता जानते हैं। ये विभिन्न पर्यायवाची शब्द एक ही देश, एक ही काल, एक ही जाति, एक ही व्यक्ति की सृष्टि नहीं हैं, प्रत्युत विभिन्न युगों, विभिन्न देशों, विभन्न जातियों और विभिन्न व्यक्तियों की सृष्टि हैं। यह बात शब्दों के इतिहास से ज्ञात हो सकती है। हमारा ज्ञानगम्य और व्यवहारगम्य सत्य एकाधिक और सापेक्ष सत्य हैउपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि हम केवल सत्यांशों का ग्रहण करते हैं पूर्णसत्य का नहीं। और सत्यांश में भी केवल उनका दर्शन करते हैं जो वर्तमान दशा में व्यवहार्य और जीवनोपयोगी हैं। साधारणजन का तो कथन ही क्या है, बड़े-बड़े तत्त्ववेत्ता भी अपनी अलौकिक प्रतिभा और तर्क द्वारा सम्पूर्ण सत्यांशों को नहीं जान पाते। आयुकर्म उनकी पूर्णता की प्रतीक्षा नहीं करता। अतः उन्हें अपने अधूरे अनुभवों के आधार पर ही अपने दर्शन का संकलन करना होता है। ये अनुभव सबके एक सामान नहीं होते। जैसा कि ऊपर बतलाया है, वे प्रत्येक के दृष्टि भेद के कारण विभिन्न प्रकार के होते हैं। दृष्टि की विभिन्नता ही विज्ञानों और दर्शनों की विभिन्नता का कारण है। परन्तु इस विभिन्नता का यह आशय नहीं है कि समस्त विज्ञान और दर्शन मिथ्या हैं या एक सत्य है और अन्य मिथ्या है। नहीं, सब ही विज्ञान और दर्शन वस्तु की उस विशेष दृष्टि की जिससे विचारक ने उसे अध्ययन किया है- उस विशेष प्रयोजन की जिसको पूर्ति के लिये मनन किया है, उपज हैं। अतः अपनी अपनी विवक्षित दृष्टि और प्रयोजन की अपेक्षा सब ही विज्ञान और दर्शन सत्य हैं। कोई भी सिद्धान्त केवल इस कारण मिथ्या नहीं कहा जा सकता कि वह पूर्णसत्य न होकर सत्यांश-मात्र है। चूंकि प्रत्येक सत्यांश और उसके आधार पर अवलम्बित विज्ञान और दर्शन अपने अपने क्षेत्र में जीवनोपयोगी और व्यवहार में कायकारी हैं। अतः प्रत्येक सत्यांश अपनी अपनी दृष्टि और प्रयोजन की अपेक्षा सत्य है। सिद्धान्त उसी समय मिथ्या कहा जा सकता है कि जब वह पूर्ण-सत्य न होते हुए भी उसे पूर्णसत्य माना जावे। उदाहरण के लिये ‘मनुष्य' को ही ले लीजिये, यह कितनी विशाल और
SR No.538057
Book TitleAnekant 2004 Book 57 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2004
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size9 MB
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